आज्ञा चक्र का जागरण आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे “तीसरा नेत्र” भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह 3 प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है। इसका मंत्र है ॐ। आज्ञा चक्र का रंग सफेद है। इसका तत्व आकाश तत्त्व है। इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।

आज्ञा चक्र की साधना विधि

किसी शांत स्थान पर ज्ञान मुद्रा में बैठे | शरीर को शिथिल करते हुए 15 बार लम्बी गहरी साँस लें | प्राण योग वीडियो शुरू करें , और आज्ञा चक्र से निकलने वाली ऊर्जा को देखते हुए , अपनी आँखे बंद करे, और वही ऊर्जा अपने आज्ञा चक्र पर अनुभव करें और ॐ मंत्र का मानसिक जाप करते हुए , वीडियो से निकल रही ध्वनि को अपने आज्ञा चक्र पर अनुभव करें |

समयावधि – प्रतिदिन 21 मिनिट

कालावधि– 21 दिन से लेकर 3 माह तक |

आज्ञा चक्र के जागरण के प्रभाव

1. इससे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्ष दिखने लगते है और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं। साथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होता है जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से संपन्न कर लेते हैं।

2. जागरण से पूरा शरीर उर्जा से आप्लावित हो जाता है जिससे किसी बीमार व्यक्ति को स्पर्श करके ही रोग मुक्त कर सकते हैं।

3. किसी अपराधी प्रवृति के युवक या युवती की गलत सोंच को ख़त्म कर उसे सही राह पर लाया जा सकता है। रात दिन तनाव में रहने वाले व्यक्ति को माइण्ड फ्री और फ्रेस बनाया जा सकता है।

4. किसी की उलझी हुई गुथियों को सुलझाया जा सकता है। नशा पान करने वालों को पूर्ण स्वस्थ किया जा सकता है।

5. ज्ञान के क्षेत्र में महारथ हासिल कर सकता है। जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे ही बौद्धिक सिद्धि कहा जाता हैं।

6. आज्ञाचक्र की संगति शरीरशास्त्री आप्टिकल कायजमा, पिट्यूटरी एवं पीनियल ग्रन्थियों के साथ बिठाते है। यह ग्रन्थियाँ भ्रूमध्य की सीध में मस्तिष्क में है। इनसे स्रवित होने वाले हारमोन स्राव समस्त शरीर के अति महत्वपूर्ण मर्मस्थलों को प्रभावित करते है |

7. भाग्य और भविष्य बनाने की कुँजी हाथ लग जाती। इस स्थिति में चित की चंचलता समाप्त हो जाती है, बुद्धि में पवित्रता और शुचिता का उदय होता है, आसक्ति का अवशेष तक नहीं रहता, संकल्पशक्ति अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है तथा सत्संकल्प पूरे होने लगते है, व्यक्ति में अतीन्द्रिय अनुभूतियों और सिद्धियों का चमत्कार प्रकट होने लगता है, उसके शाप-वरदान फलित होने लगते है; वाणी में ओज, मुखमण्डल पर तेज और आँखों में चमक विराजने लगती है। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार की विशेषताएँ साधक में प्रकट और प्रत्यक्ष होती दिखाई पड़ती है।

8. आज्ञाचक्र के जागरण के समय का अनुभव बताते हुए तत्त्वदर्शी आत्मवेत्ता कहते है कि यह लगभग वैसा ही होता है, जैसा चरस, गाँजा, भाँग या एल.एस.डी. जैसे रसायनों के सेवन से प्राप्त होता है, पूर्ण जाग्रत स्थिति में जब भ्रूमध्य पर ध्यान एकाग्र किया जाता है, तो वहाँ दीपशिखा की भाँति एक ज्योति दिखाई पड़ती है।

9. आज्ञाचक्र के जागरण के बाद शेष चक्रों के उन्नयन के लिए दो प्रकार के क्रम अपनाये जाते है। एक में आज्ञाक्रम के उपरान्त विशुद्धि, अनाहत, मणिपूरित -इस क्रम में बढ़ते हुए मूलाधार तक पहुँचना पड़ता है, जबकि दूसरे में आज्ञाचक्र के बाद मूलाधार से शुरुआत कर ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्वाधिष्ठान, मणिपूरित, अनाहत होकर विशुद्धि तक पहुँचते है। इन दोनों में से किसी को भी रुचि और सुविधा के अनुसार अपनाया जा सकता है, पर दोनों ही क्रमों में आज्ञाचक्र का प्रथम जागरण अनिवार्य है, अन्यथा दूसरे चक्रों के विकास से उत्पन्न हुई शक्ति को सँभाल पाना कठिन होगा।

10. जब मनुष्य के अन्दर आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है तब मनुष्य के अंदर अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से मनुष्य के अन्दर सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और मनुष्य एक सिद्धपुरुष बन जाता है। अतः जब इस चक्र का हम ध्यान करते हैं तो हमारे शरीर में एक विशेष चुम्बकीय उर्जा का निर्माण होने लगता है उस उर्जा से हमारे अन्दर के दुर्गुण ख़त्म होकर, आपार एकाग्रता की प्राप्ति होने लगती है।

11. विचारों में दृढ़ता और दृष्टि में चमक पैदा होने लगती है। आज्ञा चक्र ध्यान प्रतिदिन करें, , , यदि आप ठीक ध्यान कर रहे हैं .. यहाँ पर ध्यान करने से आप भोजन न भी करे तब भी आप अपने भीतर अत्यधिक ऊर्जा अनुभव करेंगें, , आप जो भी कार्य करेंगे पूरी शक्ति से कर पाएंगे, , यहाँ पर ध्यान करने से संकल्प शक्ति अत्यधिक मजबूत हो जाती है।

12. आज्ञा चक्र ही मात्र एक मात्र चक्र है जिसके जाग्रत होने पर आप ब्रह्मांड की अनन्त ऊर्जा से एक हो सकते है इसे हम परमात्मा की पारलौकिक संसार का प्रवेश द्वार कह सकते है, , यहाँ जो आपके अनुभव होंगे वे अनुभव बाकि नीचे के चक्रो में कभी नहीं हो सकते, , यहाँ इस चक्र पर जब ऊर्जा पहुचती है तभी आप गहरे ध्यान में व समाधि में उतर सकते है और अनन्त आनन्द, , अनन्त ऊर्जा का अनुभव कर सकते है।