Jai Ho Vijay Ho
Spiritual & PranYog Healing Centre Bhopal {MP} 462042
01 Nov 2020

पिरामिड -अद्भुत , अद्वितीय , अविश्वसनीय परिणाम

पिरामिड शब्द ग्रीक भाषा के पायरा से बना है जिसका अर्थ होता है – ‘अग्नि’ तथा मिड का अर्थ है – ‘केन्द्र’ । इस प्रकार पिरामिड शब्द का अर्थ है – ‘केन्द्र में अग्नि वाला पात्र‘। जैसा कि हम सभी जानते है कि प्राचीन काल से ही अग्नि को ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार पिरामिड का सामान्य शाब्दिक अर्थ है ‘अग्निशिखा’’ अर्थात एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा जो अग्नि के समान हमारी शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक अशुद्धियों का नाश करके हमें निर्मल और पवित्र कर सकती है।

 

पिरामिड यंत्र अंतरिक्ष से आने वाली ब्रह्मांडीय किरणों को संग्रहित करके उन्हें कल्याणकारी किरणों के रूप में परिवर्तित का कार्य निरंतर करती रहती है पिरामिड यंत्र के पाँच शीर्षो से प्राण ऊर्जा सर्पाकार कुण्डिलिनी के रूप में सदैव ऊपर की ओर बहती रहती है। प्राचीन काल से ही पिरामिड का उपयोग , चिकित्सा , ग्रह शांति , पंचतत्व संतुलन ,नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा , गृहशांति, वास्तुदोष , आध्यात्मिक प्रगति , वस्तुओं के संरक्षण , शत्रु से रक्षा , सुख -शांति और समृद्धि के लिए किया जाता रहा है |  
पिरामिड में ‘कॉस्मिक विण्ड’ चलती रहती है, जो कि पिरामिड की आज तक ज्ञात एवं अज्ञात दोनों प्रकार की शक्तियों का पुंज है। ब्रह्मांड में व्याप्त सभी शक्तियों का संग्रह एवं मेल पिरामिड में होता है।जो विकारों को रोक सकती है तथा विकारों से सुरक्षित भी रख सकती है। मेनली पामर हॉल ने अपनी पुस्तक ‘द सीक्रेट टीचिंग ऑफ ऑल एजीज’ में कहा है- *ये भव्य पिरामिड विश्व के शाश्वत्‌ ज्ञान का जीवंत संयोजन हैं। इसके कोने शांति, गहनता, बुद्धिमत्ता तथा सच्चाई के प्रतीक हैं। इनके तिकोनिया भाग त्रिस्तरीय आत्मिक शक्ति के प्रतीक हैं। पिरामिडों के परिसर में ब्रह्मांड की ऊर्जा का क्षेत्र स्थित है। इस परिसर में उत्पन्न प्रवाह विशेष, इलेक्ट्रो-मेग्नेटिक प्रति ऊर्जा को उद्भवित करता है तथा ऊर्जा को वहन करता है।* इस संबंध में डॉ. फ्लेनगन लिखते हैं- *पिरामिड विशेष भौमितिक आकार के फलस्वरूप उसके पाँचों कोनों (चार बाजू के तथा एक शिखर को) में एक विशिष्ट प्रकार का सूक्ष्म किरणोत्सर्ग उत्पन्न होता है।
यह ऊर्जा पिरामिड की एक-तिहाई ऊँचाई पर स्थित ‘किंग्स चेम्बर’ नामक विस्तार में घनीभूत होती है। जिस बिन्दु पर यह ऊर्जा केन्द्रित होती है, उस बिन्दु को ‘फोकल जाइट’ कहते हैं। इस बिन्दु पर स्थित अणु इस ऊर्जा को अवशोषित करते हैं, जिसके फलस्वरूप अणु के अंतर्गत छिपे परमाणु स्पन्दित होते हैं और परमाणु की भ्रमण कक्षा में स्थित इलेक्ट्रॉन अपनी भ्रमण कक्षा (वर्तुल) को छोड़कर बाहर निकल जाते हैं।*

इसके कारण प्रचंड ऊर्जा (ऐटमिक-ऐनर्जी) उत्पन्न होती है। ऐसी प्रचंड ऊर्जा पिरामिड के पाँचों कोनों में से बाहर फैलती है इससे पिरामिड के आसपास का क्षेत्र एवं वातावरण आवेशित हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न ऊर्जा को मानव जाति के लाभार्थ एवं विकासार्थ प्रयोजित करने के उपायों के संबंध में आधुनिक विज्ञानी खोज कर रहे हैं। हजारों सालों से पिरामिड में सुरक्षित मृत देहों की , इजिप्ट के पिरामिडों की चमत्कारिक शक्ति का एकमात्र कारण उसकी विशिष्ट भौमितिक आकृति तथा उसकी संरचना है। मंदिर की आकृति, मस्जिद के गुम्बजों, चर्च के मीनारों की टोच, बौद्ध धर्म के पेगोडा के आकार, इसी संरचना पर आधारित हैं। इन स्थलों में बैठने से हमें जिस शांति का अनुभव होता है, उसका कारण यह है कि वहाँ कोई शक्ति विशेष प्रवाहित हो रही है। शक्ति विशेष के इस प्रवाह का कारण इन रचनाओं के ऊपरी हिस्से की विशिष्ट आकृतियाँ हैं।

भारत में पिरामिड :
 रेखा गणित का जन्म भारत में हुआ था। यदि सिंधु घाटी की सभ्यता बची रहती तो निश्चित ही हमें पिरामिडों के बारे में खोज करने की जरूरत नहीं होती। बलूचिस्तान से लेकर कश्मीर और कश्मीर से लेकर नर्मदा गोदावरी के तट भव्य मंदिरों और महलों का मध्यकाल में जो विध्वंस किया ‍गया उसके अब अवशेष भी नहीं बचे हैं। 

कैलाश पर्वत एक पिरामिडनुमा पर्वत ही है। उसे देखकर ही प्राचीनकाल में हिन्दुओं ने अपने मंदिरों, महलों आदि की स्थापना की थी। सनातन धर्म के मंदिरों की छत पर बनी त्रिकोणीय आकृति उन्हीं प्रयोगों में से एक है। जिसे वास्तुशास्त्र एवं वैज्ञानिक भाषा में पिरामिड कहते हैं।
असम में भी है पिरामिड :
असम के शिबसागर जिले के चारडियो में हैं अहोम राजाओं की विश्‍वप्रसिद्ध 39 कब्रें। इस क्षेत्र को ‘मोइडम’ कहा जाता है। बताया जाता है कि उनका आकार भी पिरामिडनुमा है और उनमें रखा है अहोम राजाओं का खजाना। अहोम राजाओं का शासन 1226 से 1828 तक रहा था। उनके शासन का अंत होने के बाद उनके खजाने को लूटने के लिए मुगलों ने कई अभियान चलाए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।
कहते हैं कि इस खजाने को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मुगलों ने प्रयास किए। सेनापति मीर जुमला ने उनकी कब्रों की खुदाई करवाना शुरू कर दिया। उसने वहां स्थित कई मोइडमों को तहस-नहस करवा दिया, लेकिन हमले के चंद दिनों बाद ही मीर की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई।

इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस कब्र को खोदकर यहां के रहस्य को जानने का प्रयास किया लेकिन उनकी भी मौत हो गई। फिर एक बार म्यांमार के सैनिकों ने हमला कर कब्र के खजाने को लूटने का प्रयास किया लेकिन उनको खून की उल्टियां शुरू हो गईं और वे सभी मारे गए।

39 अहोम शासक इन पिरामिडों में बनी कब्रों में चिरनिद्रा में सो रहे हैं। इन राजाओं को जिसने भी जगाने की कोशिश की, उसको मौत की नींद सोना पड़ा है। इन मोइडमों के साथ रहस्यों और दौलत की ऐसी दुनिया लिपटी हुई है कि जिसकी वजह से इन कब्रों पर बार-बार आक्रमण करने के साथ इनसे छेड़खानी की गई। जिसने भी उन कब्रों पर बर्बादी की लकीर खींची, मौत ने उसे गले लगा लिया।

यदि आप प्राचीनकाल के मंदिरों या आज के दक्षिण भारतीय मंदिरों की रचना देखेंगे तो जानेंगे कि सभी कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। दक्षिण भारत के मंदिरों के सामने अथवा चारों कोनों में पिरामिड आकृति के गोपुर इसी उद्देश्य से बनाए गए हैं कि व्यक्ति को उससे भरपूर ऊर्जा मिलती रहे। ये गोपुर एवं शिखर इस प्रकार से बनाए गए हैं ताकि मंदिर में आने-जाने वाले भक्तों के चारों ओर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का विशाल एवं प्राकृतिक आवरण तैयार हो जाए।
 

आप जानते ही हैं कि ऋषि-मुनियों की कुटिया भी उसी आकार की होती थी। प्राचीन मकानों की छतें भी कुछ इसी तरह की होती थीं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के घर पिरामिडनुमा ही पाए जाते हैं।

हालांकि जानकार लोग कहते हैं कि आज से लगभग 5,000 वर्ष पूर्व जब मिस्र में पिरामिडों का निर्माण हुआ, तब भारत में सर्वत्र विशालकाल तुंग वृक्षों वाले वन थे तथा तत्कालीन भारत की जलवायु पूर्णत: संतुलित, उत्तम तथा आरोग्यप्रद थी। इस कारण भारत में पिरामिड बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके विपरीत मिस्र के गर्म रेगिस्तान में वृक्षावली तथा जल के अभाव की स्‍थिति में पिरामिड बनाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। पिरामिडों में एक और जहां पीने के जल का संरक्षण किया जाता था तो दूसरी ओर उससे बिजली भी उत्पादित ‍की जाती थी।

पिरामिडों में ही शव क्यों रखे जाते हैं ?
मिश्र के पिरमिडों में रखे शव (ममी) आज तक सुरक्षित हैं। पिरामिड में प्रकाश, जलवायु तथा ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रूप में रहता है जिसके चलते कोई भी वस्तु पिरामिड के पास रखने मात्र से खराब नहीं होती है । यह रहस्य प्राचीन काल के लोग जानते थे। इसीलिए वे अपनी कब्रों को पिरामिडनुमा बनाते थे और उसको इतना भव्य आकार देते थे कि वह हजारों वर्ष तक कायम रहे।
इस प्रकार पिरामिड विद्या अमरता की विद्या है। प्रतिदिन कुछ समय तक पिरापिड के पास रहने से व्यक्ति की बढ़ती उम्र रुक जाती है |
पिरामिड पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि पिरामिड का भू-चुम्बकत्व एवं ब्रह्मांडीय तरंगों से विशिष्ट संबंध है। उत्तर-दक्षिण गोलार्धों को मिलाने वाली रेखा पृथ्वी की चुम्बक रेखा है। चुम्बकीय शक्तियां विद्युत-तरंगों से सीधी जुडी हुई हैं, जो यह दर्शाती हैं कि ब्रह्मांड में बिखरी मैग्नेटोस्फीयर में विद्यमान चुम्बकीय किरणों को संचित करने की अभूतपूर्व क्षमता पिरामिड में है। यही किरणें एकत्रित होकर अपना प्रभाव अंदर विद्यमान वस्तुओं या जीवधारियों पर डालती हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन लोग इसके महत्व को जानते थे।

यह ब्रह्मांड में व्याप्त ज्ञात व अज्ञात शक्तियों को स्वयं में समाहित कर एक ऊर्जायुक्त वातावरण तैयार करने में सक्षम है, जो जीवित या मृत, जड़ व चेतन सभी तरह की चीजों को प्रभावित करता है।

मस्तिष्क पर प्रयोग


यदि पिरामिड का प्रयोग सिर के ऊपर किया जाये तो इससे मस्तिष्क पर सकारात्क प्रभाव पड़ता है। अल्फ़ा तरंगों का प्रवाह बढ़ जाता है , उदान प्राण का संतुलन होकर नकारात्मक चिन्तन दूर होकर मन में अच्छे विचार उत्पन्न होने लगते हैं, सिर दर्द , बालों का गिरना , बालों का सफ़ेद होना , नींद न आना , अवसाद , चिड़चिड़ापन , मानसिक एकाग्रता, मेमोरी की समस्या ,तनाव, माइग्रेन, , लकवा , डिमेन्शिया , चिंता  , थकान , बुरे विचार , आँखों की समस्या , कानों की बीमारी आदि समस्याओं से छुटकारा मिलता है |विद्यार्थियों के लिये भी पिरामिड चिकित्सा अत्यन्त उपयोगी है। इससे उनकी सीखने की क्षमता, याद करने की क्षमता को काफी हद तक विकसित किया जा सकता है। यदि पिरामिड कुर्सी के नीचे पिरामिड रखकर विषय को याद करें, तो इससे उन्हें अपना विषय जल्दी याद हो सकता है ओर उनकी बुद्धि का विकास हो सकता है।

शारीरिक दर्द से मुक्ति
पिरामिड के उपयोग से शरीर के किसी भी अंग में होने वाले दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है | दर्द वाले स्थान पर पिरामिड रखने और धीरे धीरे हलके हाथ से पिरामिड से मसाज करने पर दर्द से तुरंत राहत मिलती है |

जल को आरोग्यप्रद बनाना

भारतीय संस्कृति में पानी को देवता मानकर उसकी पूजा का विधान किया गया है, हमारे वेद पानी को अमृत मानकर उससे किसी भी समस्या का निदान करने की महिमा से भरे पड़े है , हजारों वर्षों से हमारी पवित्र -पावन नदियां  हमारी सभी समस्याओं के समय हमें सम्बल प्रदान करती रही है, आज भी गंगा जल से कोरोना के इलाज की बात की जा रही है | हमारी संस्कृति की विशेषताओं को वैज्ञानिक प्रमाणों से सिद्ध करके अनेक वैज्ञानिको ने विश्व भर में प्रसिद्धि प्राप्त की है, इनमे डॉ. ओट्टो वानबर्ग , डॉ।  बेड़निरिच , डॉ. मसारू इमेटो के नाम प्रमुख है | डॉ. ओट्टो वानबर्ग ने अल्कलाइन पानी से कैंसर सहित अनेक बिमारियों पर विजय प्राप्त की |  अल्कलाइन पानी जीवन का बहुत बड़ा स्त्रोत है। साधारण पानी पीने की तुलना में जब हम अल्कलाइन पानी पीते हैं तो यह शरीर में अम्लीय पदार्थ को प्रभावहीन करके उन्हें घुलनशील बना देता है जो मूत्र और पसीने के रूप में शरीर के बाहर निकल जाता है। यही कारण है कि अल्कलाइन पानी को लाख दुखों की एक दवा माना गया है कई बीमारियों का मुख्य कारण वह अम्लीय व्यर्थ पदार्थ होते हैं जिनका शरीर से निष्कासन नहीं हो पाता और वह शरीर के मुख्य भागों में जमा हो जाते हैं और फिर धीरे धीरे अपने आस पास की कोशिकाओं में भी फैलने लगते हैं , अम्लीय व्यर्थ पदार्थ के कारण कोशिकाओं को ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हो जाती है , फलस्वरूप जीवित शरीर में प्राण ऊर्जा के बाधित होने से शरीर के अंगों की काम करने की क्षमता कम होने से  वायरस के संक्रमण का खतरा ,कैंसर, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप , मधुमेह, गुर्दों की बीमारियां, गठिया, अर्थराइटिस, कब्ज,हैजा,मोटापा, सर दर्द, त्वचा रोग, त्वचा की एलर्जी, दमा और अंत में मृत्यु की प्रक्रिया शुरू हो जाती है , इसलिए इस परिस्थिति को रोकने के लिए अल्कलाइन पानी पीकर अम्लीय व्यर्थ पदार्थ के जमा होने से हमें रोकथाम करनी चाहिए। सामान्यता अल्कलाइन पानी को विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसे इत्यादि जिनका कारण अम्लीय व्यर्थ पदार्थ का बनना और शरीर में जमा होना है। स्वस्थ्य कोशिका क्षारीय और कैंसर कोशिका अम्लीय होती है। विश्व को भारत द्वारा भेजी जा रही दवा हड्रोक्लोरोक्वीन भी शरीर को अल्कलाइन बनाने का कार्य करती है, जिससे संक्रमण समाप्त हो जाता है |

पिरामिड को जल के पात्र के ऊपर रख देने से 8 घंटे के अन्दर ही जल अत्यधिक आरोग्यप्रद, एल्कलाइन , मीठा और स्वादयुक्त हो जाता है।
खाद्य पदार्थ जैसे की फल, सब्जियाँ, दूध, दही, मिठाई , इत्यादि के ऊपर पिरामिड रख देने से वे आरोग्यप्रद एवं अधिक स्वादयुक्त हो जाते हैं तथा उनकी गुणवत्ता में भी अत्यधिक वृद्धि हो जाती है और वे लम्बे समय तक ताजे बने रहते हैं। फलों से जहरीले केमिकल्स का असर कम हो जाता है |

मैडिटेशन ,उपासना, प्रार्थना में उपयोगिता

पिरामिड में प्राण योग चिकित्सा { वाइब्रेशन , एनर्जी , फ्रीक्वेंसी }   सीक्रेट ज्योमेट्री , क्रिस्टल हीलिंग , धातु विज्ञानं , एनर्जी मेडिसिन , ओरगॉन हीलिंग , लिथोथेरेपी,  मंत्र चिकित्सा, पिरामिड विज्ञान आदि के सहयोग लिया जाता है | यह व्यक्ति और उसके घर की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करके उसके वातावरण को शुद्ध करता है |
पिरामिड ,से प्राण ऊर्जा , और वाइब्रेशन के माध्यम से ,मानव मस्तिष्क में तरंगें पैदा होती हैं जिन्हे साइट्रानिक वेब फ्रंट कहते हैं। इन तरंगों के अहसास को मानव मस्तिष्क के न्यूरॉन ग्रहण कर लेते हैं। हमारे मस्तिष्क की अल्फा तरंगों की आवृति इन साइट्रानिक तरंगों की आवृति जैसी होने के कारण हमारा मस्तिष्क तरंगों को पकड़ लेता है | इन तरंगों से मैडिटेशन और साधना की सिद्धि बहुत शीघ्र होती है |

अनिद्रा रोग

पिरामिड से निकलने वाली प्राण ऊर्जा शरीर के समस्त अवयवों की ऊर्जा को नियमित कर देती है , जिससे समस्त अंग ठीक तरह से कार्य करने लगते है , फलस्वरूप व्यक्ति को अनिद्रा रोग से मुक्ति मिल जाती है | अच्छी नींद लाने के लिए पिरामिड को सर के पास अथवा पलंग के नीचे रखे |

पौधों की वृद्धि

पिरामिड से चार्ज किए गए जल को पेड़ -पौधों में डालने से पैदावार बहुत अच्छी होती है, और जल्दी विकास होता है |

पेट पर प्रयोग

पेट की इन सभी समस्याओं का अचूक इलाज

एसिडिटी

क़ब्ज़

गैस की समस्या

उलटी दस्त

पेट दर्द

पेट फूलना

पेट में भारीपन

जी मचलाना

अपच

भूख कम लगना

हिचकी आना

आदि समस्याओं में पिरामिड तुरंत आराम प्रदान करता है |

धन वृद्धि

धन भी एक तरह की ऊर्जा है, जिसकी एक निश्चित फ्रीक्वेंसी होती है, यही फ्रीक्वेंसी मूलाधार चक्र और पृथ्वी तत्त्व की भी होती है | मूलाधार के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित ,ऊर्जा के नियम के अनुसार समान गुण वाली वस्तुयें , समान गुण वाली वस्तुओँ को आकर्षित करती है |
पिरामिड मूलाधार चक्र , पृथ्वी , बुध्ध ग्रह , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा को संतुलित करता है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है |  

मासिक धर्म की समस्याओं से मुक्ति पायें

कमर दर्द

पेट दर्द

पीठ में दर्द होना

चिड़चिड़ापन

मासिक धर्म के समय सा उससे पहले चेहरे पर मुंहासों का होना

थकान

बार-बार पेशाब की इच्छा

सिर व पेडू में दर्द

कब्ज

स्तनों में तनाव

और कभी –कभी पैरों में सूजन

माहवारी न होना या देर से आरंभ होना

भारी रक्तस्राव

माहवारी से पहले तनाव /कष्ट

मूड स्विंग

वजन में तेजी से परिवर्तन होना

अत्यधिक नीँद आना , या नींद न आना

आदि समस्याओं से मुक्ति पाएं |

पिरामिड द्वारा आपके चक्रों के असंतुलन को प्राण ऊर्जा के माध्यम से ठीक किया जाया है, यह प्राण ऊर्जा आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर का कार्य करती है | हमारे शरीर में विद्यमान सात चक्र हमारी अंत स्रावी ग्रंथियाँ है, जो मासिक धर्म के समय असंतुलित हार्मोन्स का स्त्राव करती है, पिरामिड एस्ट्रोजन , प्रोजेस्ट्रॉन , थाइरॉक्सिन आदि को संतुलित करता है | जिससे मासिक धर्म की समस्यायें दूर होती है | इसके आलावा , पिरामिड समान और अपान प्राण को भी संतुलित करता है, जिससे प्रजनन अंग की समस्या तेज़ी से ठीक होती है, इसके अलावा , प्राण ऊर्जा द्वारा जल तत्त्व को संतुलित किया गया है, जिससे मासिक धर्म का सम्बन्ध है |

रेडिएशन से मुक्ति

पिरामिड से निकलने वाली दिव्य प्राण ऊर्जा की शक्ति मोबाइल , लैपटॉप , मोबाइल टॉवर , टेलीविज़न से निकलने वाली हानिकारक तरंगो को रोक लेती है, और व्यक्ति हानिकारक रेडिएशन के दुष्प्रभाव से बच जाता है, इतना ही नहीं यह किसी भी प्रकार के विकिरण से रक्षा करता है |


रोड एक्सीडेंट से मुक्ति

पृथ्वी लगातार हमें अपनी चुंबकीय शक्ति , पञ्च तत्त्व की पूर्ति से अनेक तरह तरह के तरीकों से निरोग बनाने का कार्य करती है, परन्तु कही कही इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है , वैज्ञानिक इसे जियोपैथिक स्ट्रेस कहते है | जियोपैथिक स्ट्रेस की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका मतलब होता है ऐसी पीड़ा या परेशानी जो की पृथ्वी के प्रभाव के कारण होती है | जयोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत निकलने वाली उर्जायें एक सामान्य मनुष्य के उर्जा के स्तर से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है | इसीलिए अगर आप ऐसे स्ट्रेस जोन में  होते है या उसके प्रभाव में आते है तो  किसी Magnetic Grid Line या underground water system से उत्पन्न होने वाली तरंगो से प्रभावित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है | यह पिरामिड सभी प्रकार से जियोपैथिक स्ट्रैस से व्यक्ति की रक्षा करके हर प्रकार की दुर्घटना से रक्षा करता है | इसे अपनी कार ,ट्रक , ट्रैक्टर या बस में रखने से अनेक चमत्कारिक परिणाम मिलते है | 
अज्ञात तकलीफो से मुक्ति

पृथ्वी की नकारात्मक शक्ति { जियोपैथिक स्ट्रैस } , वास्तुदोष, नकारात्मक ऊर्जा के कारण , किसी विशेष घर के लोग बहुत परेशान रहते है , इसमें नींद ना आने की समस्या, सिरदर्द, बैचेनी, बुख़ार , कैंसर  बच्चों का चिडचिडा व्यवहार, बड़ों में मनमुटाव , अच्छे खासे व्यापार का अचानक डूब जाना , घर के बीमार लोगों को दवाओं का असर न होना , बड़ों में अवसाद { डिप्रेशन } का शिकार होना , आदि मामलों में यह पिरामिड अत्यंत उपयोगी है |


जहरीले जीव जंतुओं , जलने पर तुरंत असरकारक 

24 Oct 2020

प्राण योग से घाव ,चोट, मोच ,खरोंच एव ऑप्रेशन और एक्सीडेंट से अंगों की खोई प्राण शक्ति वापिस लाएं |

प्राण योग विज्ञानं के अनुसार विभिन्न चक्रों , पञ्च तत्त्व , पञ्च प्राण , और ऊर्जा के असंतुलन से विभिन्न प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होती है , प्राण योग के द्वारा , प्राकृतिक तरीकों से शरीर में असंतुलित तत्वों , चक्रों, प्राणों को संतुलित किया जाता है | प्राण ऊर्जा चिकित्सा में एक निश्चित ध्वनि ,ऊर्जा , वाइब्रेशन पर शरीर के अंगों में सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है | इस प्राण योग ध्यान से आपको निम्न लिखित बीमारियों में लाभ मिलता है |

ऊर्जा प्रभाव निम्न लिखित में लाभकारी है 

लीवर की बीमारी,

किडनी की बीमारी

आँखों के दोष

कान सम्बन्धी समस्या ,

ह्रदय रोग ,

घुटनो की तकलीफ

पाचन तंत्र की बीमारी

रीढ़ की हड्ड़ी की समस्या ,

अस्थमा

टी बी रोग

कैंसर

जल जाना

गैस्ट्रिक

एसिडिटी

मायग्रेन

बालों की समस्या

एडी में दर्द चोट लगना ,

मोच आना घाव हो जाना ,

डायबिटीज

आभा मण्डल में वृद्धि

शरीर के चारों तरफ सुरक्षा कवच का निर्माण

ख़राब हो चुके अंगो में पुन : जीवनी शक्ति का उदय

रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि

आदि में अत्यन्त उपयोगी |

विधि

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किसी एकांत स्थान पर पद्मासन , सुखासन , वज्रासन में या किसी भी आसन में बैठे , या फिर आसमान की तरफ सिर करके लेट जाये , हथेलियाँ आसमान की तरफ अधखुली रहें , फिर 15 बार लम्बी गहरी साँस लें , तत्पश्चात तकलीफ वाले स्थान या अपनी समस्या पर ध्वनि को महसूस करे तथा मन ही मन यह कल्पना करें कि आपकी तकलीफ या समस्या दूर हो रही है, और आपका जीवन उत्साह , ख़ुशी , समृद्धि और आनंद से परिपूर्ण हो रहा है | | 21 मिनिट बाद आपको दर्द से राहत महसूस होगी , श्रेष्ठ परिणाम के लिए 21 दिन तक प्रतिदिन कम से कम 21 मिनिट तक इस प्रक्रिया या ठीक होने तक दोहराएं | हैड फ़ोन का प्रयोग करने से ज्यादा अच्छे परिणाम मिलते है | प्रतिदिन सुबह – शाम 21 दिन तक कम से कम 21 मिनिट तक सुनने से बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते है |

प्राण ऊर्जा विशेषज्ञ – योगी योगानंद

Energetic Effects

Aura Cleansing

Healer energy Chakra Alignment

Restructures damaged organs by sending message to tissues and bringing them to original form .

Influences the energy field around you .

Influenced the energy field around your home and office .

Rapid healing of Burns, fractures , Sprain, cuts, and other Injuries.

It enhance the immune system .

प्राण योग चिकित्सा की विशेषताएं

1 किसी भी आयु वर्ग का कोई भी व्यक्ति इससे लाभ ले सकता है | {एक दिन से लेकर 100 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्ति }

2 .बीमार , अपाहिज , अशक्त सभी के लिए यह समान रूप से उपयोगी है |

3 .इसे कभी भी , कही भी , किसी भी अवस्था में सोते , जागते , चलते , फिरते किया जा सकता है | इसमें किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है |

4 . यह तुरंत असरकारक है , बिना दवा , बिना इंजेक्शन , बिना जाँच , बिना फीस , बिना दुष्प्रभाव , तुरंत आराम |

5 .यह प्राण सन्तुलन , चक्र संतुलन , पञ्च तत्त्व संतुलन , असंतुलित ऊर्जा को शरीर में संतुलित करता है, इसलिए बिना दुष्प्रभाव तुरंत असर दिखाता है |

6 . यह व्यक्ति के तीनो प्रकार के स्वास्थ शारीरिक , मानसिक , आध्यात्मिक में वृद्धि करता है |

7 . यह प्राण योग व्यक्ति के भूतकाल , वर्तमान और भविष्य से भी सम्बंधित है |

8 . यह व्यक्ति के शरीर की अवरूद्ध हो गयी ऊर्जाओं के पुन : संतुलन पर आधारित है |

9 . प्राण योग में प्रकृति प्रदत्त समस्त वस्तुओं का इलाज में प्रयोग किया जाता है |

10 .यह प्राण योग पद्धति हमारे ऋषि -मुनियों द्वारा दी गयी प्राचीन महान विद्या है, जो वर्तमान विज्ञानं से हजारों -हजार साल आगें है |

24 Oct 2020

बढ़ती उम्र को प्राण योग से नियंत्रित करें | Pran yoga for anti ageing

वैज्ञानिक व्याख्या

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प्राण योग आपके चक्र { अन्त स्त्रावी ग्रंथियों } से निकलने वाले हार्मोन्स को नियंत्रित करता है, फलस्वरूप आप हमेशा युवा जवान दिखाई देने लगते है , प्राण योग आपके मस्तिष्क से निकलने वाली अल्फ़ा , बीटा , डेल्टा तरंगो को बढ़ा देता है, फलस्वरूप आप शांत , ऊर्जावान और तरोताजा महसूस करते है, प्राण योग ध्यान की तरंगे आपके आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर की तरह कार्य करती है, फलस्वरूप नयी कोशिकाओं का निर्माण होने से लम्बे समय तक युवा और अनेक बीमारियों से बचे रहते है |

विधि

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प्राण योग ध्यान को सुनना शुरू कीजिये ,सीधे आसमान की तरफ मुँह करके लेट जाएँ हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये , आँखे बंद कीजिये , अब दाएं हाथ के अंगूठे से अपनी दांयी नाक के नथुने को बंद कीजिये , और बाएं नथुने से साँस खींचते हुए यह कल्पना कीजिये की प्राण ऊर्जा आपके शरीर में आ रही है , जो आपको लगातार युवा बनाये रखने सहित, समस्त समस्याओं को ठीक करने जा रही है , साँस को रोककर रखिये , जब तक घबराहट न होने लगे , साँस को रोके रखिये , फिर जब बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे फिर दाएं नथुने से बाहर निकाल दीजिये | अब बाएं नथुने को अनामिका अंगुली से बंद कीजिये , दायें नथुने से साँस खींचिए , और रोक कर रखिये , जब तक आपको घबराहट न होने लगे , अब बाएं से छोड़िये , आपको जिस तरफ से साँस लेना है, उसके विपरीत तरफ से छोड़ना है , और जिस तरफ से आपने साँस छोड़ी है, उसी तरफ से आपको लेनी है | ऐसा 11 बार करें , हर बार ज्यादा देर तक साँस रोकने का अभ्यास करें , फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें , प्राण योग ध्यान मैडिटेशन की ध्वनि को आपने सभी चक्रों पर 1 -1 मिनिट तक महसूस करे | अब आँखे खोल लीजिये , आप अपने आप को एक नयी दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण पायेगें | और हा, अपनी प्रतिक्रिया , देना न भूलें , मुझे इंतजार रहेगा |

24 Oct 2020

अपने शरीर को पावरहाउस कैसे बनाये |

अपनी प्राण ऊर्जा को संतुलित करें, Balance Your Energy

इस प्राण योग ध्यान के माध्यम से आपके चक्र { अन्त स्त्रावी ग्रंथियों } , पञ्च तत्त्व , पञ्च प्राण , को संतुलित किया गया है, फलस्वरूप आपकी किसी भी शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को यह ध्यान संतुलित करने का कार्य करता है, प्राण योग ध्यान की तरंगे आपके आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर की तरह कार्य करती है, जिससे आपको तुरंत लाभ महसूस होने लगता है |

विधि –

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प्राण योग ध्यान को सुनना शुरू कीजिये ,सीधे आसमान की तरफ मुँह करके लेट जाएँ हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये , आँखे बंद कीजिये , अब दाएं हाथ के अंगूठे से अपनी दांयी नाक के नथुने को बंद कीजिये , और बाएं नथुने से साँस खींचते हुए यह कल्पना कीजिये की प्राण ऊर्जा आपके शरीर में आ रही है , , साँस को रोककर रखिये , जब तक घबराहट न होने लगे , साँस को रोके रखिये , फिर जब बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे फिर दाएं नथुने से बाहर निकाल दीजिये | अब बाएं नथुने को अनामिका अंगुली से बंद कीजिये , दायें नथुने से साँस खींचिए , और रोक कर रखिये , जब तक आपको घबराहट न होने लगे , अब बाएं से छोड़िये , आपको जिस तरफ से साँस लेना है, उसके विपरीत तरफ से छोड़ना है , और जिस तरफ से आपने साँस छोड़ी है, उसी तरफ से आपको लेनी है | ऐसा 11 बार करें , हर बार ज्यादा देर तक साँस रोकने का अभ्यास करें , फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें , प्राण योग ध्यान मैडिटेशन की ध्वनि को आपने सभी चक्रों पर 1 -1 मिनिट तक महसूस करे | अब आँखे खोल लीजिये , आप अपने आप को एक नयी दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण पायेगें | विशेष – ह्रदय रोगी , और उच्च रक्त चाप के मरीज , साँस रोके बिना सिर्फ आँखे बंद करके प्राण योग ध्वनि को सुने |

 

23 Oct 2020

आपकी समस्याओं का कारण — कही ये तो नहीं ? पृथ्वी की नकारात्मक ऊर्जा |

आपकी समस्याओं का कारण — कही ये तो नहीं ? पृथ्वी की नकारात्मक ऊर्जा |

पृथ्वी लगातार हमें अपनी चुंबकीय शक्ति , पञ्च तत्त्व की पूर्ति से अनेक तरह तरह के तरीकों से निरोग बनाने का कार्य करती है, परन्तु कही कही इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है , वैज्ञानिक इसे जियोपैथिक स्ट्रेस कहते है, यह क्या होता है, इसके प्रभाव क्या होते है, इसको कैसे पहचाने, इसे दूर करने के क्या उपाय है |

जियोपैथिक स्ट्रेस

जियो का अर्थ होता है – पृथ्वी और पैथिक के दो अर्थ होते है – पहला रोग और दूसरा अर्थ रोग का निवारण | जियोपैथिक स्ट्रेस की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका मतलब होता है ऐसी पीड़ा या परेशानी जो की पृथ्वी के प्रभाव का कारण होती है | जर्मन शोधकर्ता Baron Gustav Frei Herr Von Pohl ने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजात किया था | geopathic stress zone and vastuउन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जियोपैथिक स्ट्रेस जोन पर शोध करने में बिताया और इस नतीजे पर पहुंचे की लगभग प्रत्येक बीमारी का कुछ न कुछ सम्बन्ध जियोपैथिक स्ट्रेस से पाया जा सकता है | इस शब्द का उपयोग उस अवस्था के लिए किया जाता है जब प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से पृथ्वी से निकलने वाली उर्जा मनुष्य के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालती है | यानि की पृथ्वी से उत्पन्न नुकसानदायक तरंगो के मनुष्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को जियोपैथिक स्ट्रेस कहा जाता है | यह भी एक तरह का वास्तु दोष है क्योंकि इसमें भी घर के अन्दर अशुभ उर्जा का प्रवाह होता है |

जियोपैथिक स्ट्रेस जोन आखिर होता क्या है ?

पृथ्वी पर उर्जा का प्रवाह उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर विशाल ग्रिड लाइन्स के रूप में होता है | इसके परिणामस्वरूप एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है | इन ग्रिड लाइन्स को हर्टमैन ग्रिड और करी ग्रिड लाइन्स के रूप में जाना जाता है |

जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से उत्पन्न समस्याएं –

जयोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत निकलने वाली उर्जायें एक सामान्य मनुष्य के उर्जा के स्तर से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है | इसीलिए अगर आप ऐसे स्ट्रेस जोन में सोते है या ज्यादा वक्त बिताते है जो की किसी Magnetic Grid Line या underground water system से उत्पन्न होने वाली तरंगो से प्रभावित है तो इसका आप पर बुरा असर पड़ सकता है | जियोपैथिक स्ट्रेस कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है | इससे होने वाली बिमारियों में कैंसर सबसे घातक है, यहाँ तक की टयुमर्स तो तकरीबन हमेशा बिलकुल उस स्थान पर विकसित होते है जहाँ पर दो या अधिक जियोपैथिक स्ट्रेस लाइन्स किसी आदमी के शरीर से होकर गुजरती है जहाँ पर वो सोता है | डॉ. मैनफेड ने अपने अध्ययन में पाया कि प्राकृतिक विद्युत् रेखाओं का एक जाल पृथ्वी को घेरे हुए है | ये रेखाएं ईशान (North-East) से नैऋत्य (South-West) की ओर व आग्नेय (South-East) से वायव्य (North-West) की ओर प्रवाहमान रहती है | उर्जा रेखाओं के इस प्रवाह को करी ग्रिड (Currie Grid) के नाम से जाना जाता है | इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोगुना हो जाता है | ये जियोपैथिक स्ट्रेस के सम्बन्ध में हुए शोध ये बताते है की ऐसे 85% मरीज जो कैंसर से मर जाते है ऐसा उनके जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ज्यादा संपर्क में रहने के कारण हुआ | दुनिया के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ और जर्मन डॉक्टर Hans Nieper ने बताया है की उनके 92% कैंसर के मरीज जियोपैथिक स्ट्रेस से प्रभावित थे | इसी क्षेत्र में शोध करने वाले एक एक प्रमुख शख्सियत Von Pohl जिन्होंने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजाद किया, उन्होंने Central Committee for Cancer Research, Berlin, Germany, के सामने ये साबित किया की किसी व्यक्ति को कैंसर की सम्भावनाये बहुत कम हो जाती है अगर उसने अपना समय जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ना बिताया हो, विशेष तौर पर सोते वक्त क्योंकि सामान्यतया जहाँ हम सोते है वहाँ GS जोन का असर ज्यादा होता है क्यूंकि उस वक्त हम स्थिर और ज्यादा ग्राह्य होते है | कैंसर पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन के असर को लेकर हुआ शोध और भी पुख्ता हो जाता है जब हम इस मसले पर अन्य शोधकर्ताओं के रिसर्च को देखते है | जैसे की डॉक्टर Ernst Hartmann, MD ने भी जियोपैथिक स्ट्रेस को कैंसर Dr. Ernst hartmann grid and Geopathic stress के सबसे मुख्य कारणों में से एक माना है | उन्होंने कहा है की हम सभी कैंसर के लिए जिम्मेदार सेल्स पैदा करते है, लेकिन वो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि की इम्यून सिस्टम के कारण साथ के साथ नष्ट भी कर दिए जाते है | लेकिन जब आप GS जोन के प्रभाव में आते है तो वो सीधे तौर पर आपको कैंसर तो नहीं देता है लेकिन कैंसर सेल्स को नष्ट करने के लिए जरुरी इम्यून सिस्टम को ही वो कमजोर कर देता है जिससे आपके कैंसर सेल्स नष्ट होने बंद हो जाते है और फिर वो ही कैंसर का कारण बनता है | सिर्फ कैंसर ही नहीं बल्कि गंभीर दीर्घकालीन बीमारियों और मनोरोगों की स्थिति में भी जियोपैथिक स्ट्रेस एक बड़े कारण के रूप में सामने आया है | इसके कारण नींद ना आने की समस्या, सिरदर्द, बैचेनी, और बच्चों का चिडचिडा व्यवहार जैसी समस्याएँ भी आती है |

लक्षण 

लक्षण जिनसे आप जियोपैथिक स्ट्रेस जोन का पता लगा सकते है,

जैसे कि – घर में अशांति का वातावरण होना

डिप्रेशन

बार बार बीमार होना

पेड़ का टेढ़ा मेढ़ा होना

सिरदर्द

दवाइयों का असर न करना

बच्चों को सोने में परेशानी होना

विधुत सम्बन्धी उपकरणों के प्रति संवेदनशीलता

बगीचे में किसी स्थान पर घास का ना उगना

दीवारों में दरारों का आना

पैरासाइट्स, बैक्टीरिया, वायरस की मौजूदगी

मधुमक्खियों का छत्ता

घर में सोने पर डरावने सपने आना

सड़क हादसों की अधिकता वाले स्थान

नींद ना आने की समस्या

बैचेनी

बच्चों का चिडचिडा व्यवहार

23 Oct 2020

मूलाधार चक्र संतुलन {ROOT CHAKRA }

साधना विधि –

हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिनमे प्रथम मूलाधार चक्र है , जो पृथ्वी तत्त्व को समाहित किये हुए है मूलाधार चक्र के देवी देवता गणेश जी , और रिद्धि -सिद्धि है, जिनकी साधना से कोई भी व्यक्ति अपनी समृद्धि के द्वार खोल सकता है | इस चक्र की ऊर्जा से आप अपने मन वांछित फल प्राप्त कर सकते है |

मूलाधार चक्र : स्थिति यह शरीर का पहला चक्र है। रीढ़ की अस्थि के अंतिम विन्दु पर चार पंखुरियों वाला यह “आधार चक्र” है। जिसका रंग लाल है | जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है, उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

मंत्र : “लं”

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वाधित या असंतुलन का परीक्षण

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आपका मूलाधार चक्र या पृथ्वी तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –

1 . क्या आप आर्थिक रूप से परेशान रहते है |

2 . क्या आप कान की समस्या से परेशान है |

3 . क्या आपका पसंदीदा स्वाद मीठा है |

4 . क्या आपका पसंदीदा रंग पीला है |

5 . क्या आप अवसाद, चिंता, कुंठा ,उच्च रक्तचाप, मुँह , ओंठ , मसल्स या फिर किडनी से जुड़ी किसी भी एक समस्या से पीड़ित है |

6 . क्या आप अधिकांश समय इसी चिंता में रहते हैं कि किस तरह अपने जीवन में मौजूद धन-संबंधी परेशानियों को समाप्त कर सकते हैं। अगर इनमे से किसी एक प्रश्न का उत्तर “हाँ ” में है, तो आपका मूलाधार चक्र वाधित है | इसे सक्रिय करने के लिए साधना और ध्यान की आवश्यकता है |

धन प्राप्ति और मूलाधार

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धन भी एक तरह की ऊर्जा है, जिसकी एक निश्चित फ्रीक्वेंसी होती है, यही फ्रीक्वेंसी मूलाधार चक्र और पृथ्वी तत्त्व की भी होती है | ऊर्जा के नियम के अनुसार समान गुण वाली वस्तुयें , समान गुण वाली वस्तुओँ को आकर्षित करती है | इस चक्र की शक्ति 9 नंबर की संख्या में निहित है |

मूलाधार चक्र को संतुलित करने के उपाय

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अगर आप मूलाधार चक्र को संतुलित कर लेते है, तो आपकी आर्थिक समस्या का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |

1 . चक्र ध्यान

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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर मूलाधार चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को मूलाधार चक्र पर महसूस करें |

अवधि –

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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |

2 . चक्र साधना – मूलाधार चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको मूलाधर चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “”लं “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और मूलाधर चक्र पर चोट करना है | { मूलाधर चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें }

साधना समय –

मूलाधार चक्र का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तक होता है, इस समय की गयी साधना विशेष फलदायी होती है |

अवधि – कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |

वैज्ञानिक विश्लेषण

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मूलाधार चक्र , पृथ्वी , बुध्ध ग्रह , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है | मूलाधार के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |

महान वैज्ञानिक निकोलो टेस्ला ने लिखा है “If you want to find the secrets of the universe, think in terms of energy, frequency and vibration.” ― Nikola Tesla

Useful

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Cystitis,

Endometriosis,

Fertility issues,

Miscarriages,

Fibroids,

Irritable Bowel Syndrome,

Kidney complaints,

Menstrual Problems,

Muscle Cramps/ Spasms,

Ovarian Cysts,

Pre-menstrual Syndrome,

Prostates Disease,

Testicular Disease,

Uterine Fibroids,

Candida,

Impotency,

Bedwetting,

Frigidity,

Creative Blocks.

Impotence,

Kidney stones,

Knee problems,

Obesity,

Piles,

Sciatica,

Weight gain/ loss,

Prostate cancer ,

Rectal cancer,

Blood diseases,

Skin disorders (especially rashes),

Itching,

Pain at base of spine,

Migraines,

Spinal curvatures,

Sciatic,

Lumbago,

Painful or frequent urination,

Backaches,

Poor circulation in legs,

Swollen ankles,

Weak arches and ankles,

Cold feet,

Weak legs,

Leg cramps,

Eczema.

23 Oct 2020

स्वाधिष्ठान चक्र Swadhisthan Chakra

साधना विधि

– हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिनमे द्वितीय स्वाधिष्ठान चक्र है , स्वाधिष्ठान चक्र के देवी देवता विष्णु जी ,और राकिनी है, इसका प्राण व्यान और तत्त्व आकाश है , { जबकि योग विज्ञानं इसका तत्त्व जल को मानता है |

स्वाधिष्ठान चक्र : स्थिति यह शरीर का दूसरा चक्र है। रीढ़ की अस्थि के काकिसकस के स्तर पर स्थित है , प्रजनन अंगों की ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

मंत्र : “वं ”

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परीक्षण

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क्या आपका स्वाधिष्ठान चक्र असंतुलित है ?????

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आपका स्वाधिष्ठान चक्र और आकाश तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –

1 . क्या आप प्रजनन अंग, त्वचा , गला, नासिका की किसी भी समस्या से ग्रसित है |

2 . क्या आप प्रजनन अंगों की किसी भी की समस्या से परेशान है |

3 . क्या आपका पसंदीदा स्वाद चटपटा ,तीखा ,और कसेला {जैसे अनार , सेम } है |

4 . क्या आपका पसंदीदा रंग सफ़ेद , भूरा , स्लेटी या ब्राउन है |

5 . क्या आप नपुंसकता , शीघ्र पतन , मांसपेशियों में दर्द , स्वेत प्रदर , अनियमित मासिक स्त्राव , पीठ दर्द किसी भी एक समस्या से पीड़ित है |

स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करने के उपाय

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अगर आप स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित कर लेते है, तो आपकी समस्या का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |

1 . चक्र ध्यान

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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर स्वाधिष्ठान चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को स्वाधिष्ठान चक्र पर महसूस करें |

अवधि –

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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |

2 . चक्र साधना –

स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको स्वाधिष्ठान चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “” “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और स्वाधिष्ठान चक्र पर चोट करना है | { स्वाधिष्ठान चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें } चक्र ध्यान से चक्र संतुलित होता है, जिससे आपको चक्र संतुलन से संबंधित समस्त बीमारियों से मुक्ति मिलती है | जबकि चक्र साधना से आपको चक्र से सम्बंधित सिद्धियां प्राप्त होती है | साधना समय – स्वाधिष्ठान चक्र का समय सुबह 3 बजे से 7 बजे { AM } तक होता है, इस समय की गयी साधना विशेष फलदायी होती है |

अवधि –

कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |

वैज्ञानिक विश्लेषण –

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स्वाधिष्ठान चक्र , आकाश तत्व , शुक्र ग्रह और व्यान प्राण तत्व की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है | स्वाधिष्ठान चक्र , आकाश तत्व , शुक्र ग्रह और व्यान प्राण तत्व के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |

23 Oct 2020

मणिपुर चक्र { Manipur Chakra }

मणिपुर चक्र साधना विधि

हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिन्हे चक्र कहते है, वैज्ञानिक इन्हे अंत स्त्रावी ग्रंथिया कहते है जिनमे तीसरा मणिपुर चक्र है , जो पृथ्वी तत्त्व को समाहित किये हुए है मणिपुर चक्र के देवता रूद्र , और देवी राकिनी है, मणिपुर चक्र विभिन्न अवयवों , संस्थानों तथा जीवन की प्रक्रियाओं को नियमित करके सम्पूर्ण शरीर में प्राण ऊर्जा को बनाये रखता है, इस चक्र की ऊर्जा से व्यक्ति सक्रियता , शक्ति , इच्छा तथा उपलब्धियां प्राप्त करके अपने मन वांछित फल प्राप्त कर सकता है | मणिपुर चक्र : स्थिति यह शरीर का तीसरा चक्र है। मणिपुर चक्र नाभि के पीछे रीढ़ की हड्डी में स्थित है , 10 पंखुरियों वाला यह “पीले रंग ” का है। मणिपुर चक्र के जागरण से जो शक्ति मिलती है, उससे निर्माण और विनाश , आत्म सुरक्षा , गुप्त खजाने की प्राप्ति , अग्नि से भय का नाश , अपने भौतिक शरीर का पूर्ण ज्ञान , व्याधियों से मुक्ति , तथा प्राण ऊर्जा का असीम भंडार आदि अनेक सिद्धियां निहित है |

मंत्र : — “रं “

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वाधित या असंतुलन का परीक्षण

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आपका मणिपुर चक्र चक्र या पृथ्वी तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –

1 . क्या आप निष्क्रिय और शक्तिहीन महसूस करते है |

2 . क्या आप कान की समस्या से परेशान है |

3 . क्या आपको मीठा स्वाद आकर्षित करता है |

4 . क्या आपका सबसे पसंदीदा रंग पीला है |

5 . क्या आप अवसाद, और उदर से सम्बंधित व्याधियों से पीड़ित है |

6. क्या आप निम्न लिखित किसी भी एक समस्या से पीड़ित है,

DNA Regeneration Abdominal cramps. Food Allergies, Bulimia, Diabetes, Digestive problems, Gall stones, Hepatitis, Liver Disease, Acidity, Pancreatitis, Peptic Ulcer, Stomach problems, Jaundice, Shingles, Gall bladder problems, Anemia, Heartburn, Gastritis, Lowered resistance to diseases, Chronic tiredness Gas, Spastic colon, अगर इनमे से किसी एक प्रश्न का उत्तर “हाँ ” में है, तो आपका मणिपुर चक्र वाधित है | इसे सक्रिय करने के लिए साधना और ध्यान की आवश्यकता है |

मणिपुर चक्र को संतुलित करने के उपाय

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अगर आप मणिपुर चक्र को संतुलित कर लेते है, तो अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |

1 . चक्र ध्यान

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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर मणिपुर चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर मणिपुर चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को मणिपुर चक्र पर महसूस करें |

अवधि

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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |

2 . चक्र साधना –

मणिपुर चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको मणिपुर चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “”रं “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और मणिपुर चक्र पर चोट करना है | { मणिपुर चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें }

साधना समय

मणिपुर चक्र का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तक होता है, इस समय की गयी साधना विशेष फलदायी होती है |

अवधि – कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |

वैज्ञानिक विश्लेषण

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मणिपुर चक्र , पृथ्वी , समान प्राण तत्व , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है |

मणिपुर चक्र के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |

मणिपुर चक्र का संतुलन निम्न लिखित में उपयोगी है

DNA Regeneration

Abdominal cramps.

Food Allergies,

Bulimia,

Diabetes,

Digestive problems,

Gall stones,

Hepatitis,

Liver Disease,

Acidity,

Pancreatitis,

Peptic Ulcer,

Stomach problems,

Jaundice, Shingles,

Gall bladder problems,

Anemia,

Heartburn,

Gastritis,

Lowered resistance to diseases,

Chronic tiredness Gas, Spastic colon,

23 Oct 2020

अनाहत चक्र जागरण – स्पर्श से समस्त बीमारियों से मुक्ति

अनाहत चक्र साधना विधि

हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिन्हे चक्र कहते है, वैज्ञानिक इन्हे अंत स्त्रावी ग्रंथिया कहते है जिनमे चौथा अनाहत चक्र है , जो वायु तत्त्व को समाहित किये हुए है अनाहत चक्र के देवता ईश देव , और देवी काकिनि है, अनाहत चक्र विभिन्न अवयवों , संस्थानों तथा जीवन की प्रक्रियाओं को नियमित करके सम्पूर्ण शरीर में प्राण ऊर्जा को बनाये रखता है, इस चक्र की ऊर्जा से व्यक्ति सक्रियता , शक्ति , इच्छा तथा उपलब्धियां प्राप्त करके अपने मन वांछित फल प्राप्त कर सकता है | अनाहत चक्र के प्रतीक चित्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है। तथापि, हृदय केन्द्र भावनाओं और मनोभावों का केन्द्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। तथापि यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है, तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। तब होता यह है कि इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव हमारे ऊपर छा जाते हैं। अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। जब आप किसी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, तब अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। आपका अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से आपकी इच्छा पूरी होगी। अनाहत चक्र : स्थिति यह शरीर का चौथा चक्र है। अनाहत चक्र नाभि के पीछे रीढ़ की हड्डी में स्थित है , 12 पंखुरियों वाला यह “हरे रंग ” का है। इस चक्र का तत्त्व वायु और ज्ञानेन्द्रिय स्पर्श है , अनाहत चक्र के जागरण से जो शक्ति मिलती है, उससे व्यक्ति किसी भी बीमारी को स्पर्श मात्र से ठीक कर देता है |

मंत्र : — “यं ”

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वाधित या असंतुलन का परीक्षण

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आपका अनाहत चक्र या वायु तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –

1 . क्या आप गुस्सा , क्रोध , आक्रामकता , अशांत जैसा महसूस करते है |

2 . क्या आप रक्तचाप , फेफड़े , स्तन कैंसर , बुख़ार , एलर्जी , अस्थमा , टी बी समस्या से परेशान है |

3 . क्या आपको खट्टा स्वाद आकर्षित करता है |

4 . क्या आपका सबसे पसंदीदा रंग हरा है |

5 . क्या आप किसी भी ह्रदय रोग से परेशान है | अगर इनमे से किसी एक प्रश्न का उत्तर “हाँ ” में है, तो आपका अनाहत चक्र वाधित है | इसे सक्रिय करने के लिए साधना और ध्यान की आवश्यकता है |

अनाहत चक्र को संतुलित करने के उपाय

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अगर आप अनाहत चक्र को संतुलित कर लेते है, तो अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |

1 . चक्र ध्यान =========== सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर छह बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर अनाहत चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर अनाहत चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को अनाहत चक्र पर महसूस करें |

अवधि

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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |

2 . चक्र साधना –

अनाहत चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको अनाहत चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “”यं “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और अनाहत चक्र पर चोट करना है | { अनाहत चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें } अवधि – कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |

वैज्ञानिक विश्लेषण 

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अनाहत चक्र , वायु , प्राण तत्व , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है | अनाहत चक्र के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |

Test of Anahat Chakra How can we recognise whether our feelings express dependency or genuine love? There is a very simple test for this: Love brings joy, not sadness Love shows understanding and provokes no arguments. Love provides security and makes no demands. Love grants freedom and knows no jealousy.

23 Oct 2020

आज्ञा चक्र {Third Eye Awaking} – तीसरे नेत्र का जागरण

आज्ञा चक्र की ऊर्जा का प्रभाव 

1. आज्ञा-चक्र हमारी दोनों भौहों के मध्य में स्थित होता है |आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे “तीसरा नेत्र” भी कहते हैं।

2. यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।

3 . -आज्ञाचक्र में जब ध्यान को एकाग्र किया जाता है, तो तीन बड़ी शक्तियों के मिलन के फलस्वरूप व्यक्तिगत चेतना का रूपान्तरण विश्वचेतना में हो जाता है।

4 . पूर्ण जाग्रत स्थिति में जब भ्रूमध्य पर ध्यान एकाग्र किया जाता है, तो वहाँ दीपशिखा की भाँति एक ज्योति दिखाई पड़ती है।

5 . इस चक्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अलग-अलग चक्रों पर ध्यान करने जो पृथक्-पृथक् अनुभूतियाँ होती है, वह सब इस एक ही चक्र पर ध्यान के अभ्यास द्वारा अनुभव की जा सकती है।

6 . आज्ञा चक्र के जाग्रत होने का लक्षण है. इससे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्षा दीखने लगते है और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं. साथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होता है जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से संपन्न कर लेते हैं |

7 . आज्ञा चक्र का जागरण होने से मनुष्य के अन्दर सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और मनुष्य एक सिद्धपुरुष बन जाता है। अतः जब इस चक्र का हम ध्यान करते हैं तो हमारे शरीर में एक विशेष चुम्बकीय उर्जा का निर्माण होने लगता है उस उर्जा से हमारे अन्दर के दुर्गुण ख़त्म होकर, आपार एकाग्रता की प्राप्ति होने लगती है।

8 . यही चक्र ऐसा है जिसपर ध्यान करने से जीवन परिवर्तन सम्भव है,,जीवन मे अलौकिक शक्तिया अनुभव होने लगती हैं |

9 . आज्ञा चक्र ही मात्र एक मात्र चक्र है जिसके जाग्रत होने पर आप ब्रह्मांड की अनन्त ऊर्जा से एक हो सकते है इसे हम परमात्मा की पारलौकिक संसार का प्रवेश द्वार कह सकते है,,यहाँ जो आपके अनुभव होंगे वे अनुभव बाकि नीचे के चक्रो में कभी नही हो सकते,,यहाँ इस चक्र पर जब ऊर्जा पहुचती है तभी आप गहरे ध्यान में व समाधि में उतर सकते है और अनन्त आनन्द,, अनन्त ऊर्जा का अनुभव कर सकते है | आज्ञा चक्र साधना विधि – आज्ञा चक्र छठा मूल चक्र है। ध्यान करने से आज्ञा चक्र होने का अभास होता है आग्या का अर्थ है आदेश। आज्ञाचक्र भौंहों के बीच माथे के केंद्र में स्थित होता है। यह भौतिक शरीर का हिस्सा नहीं है लेकिन इसे प्राणिक प्रणाली का हिस्सा माना जाता है। हिंदू इस स्थान पर श्रद्धा दिखाने के लिए सिंदूर लगाते हैं । अजना चक्र पीनियल ग्रंथि है।, जो आकाश तत्त्व को समाहित किये हुए है आज्ञा चक्र : स्थिति यह शरीर का छटवाँ चक्र है। आज्ञा चक्र दोनों आँखों के बीच में स्थित है , 2 पंखुरियों वाला यह ” बैगनी रंग ” का है।

मंत्र : — ” ॐ ”

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आज्ञा चक्र को संतुलित करने के उपाय

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अगर आप आज्ञा चक्र को संतुलित कर लेते है, तो अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |

1 . चक्र ध्यान

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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिरआज्ञा चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर आज्ञा चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को आज्ञा चक्र पर महसूस करें |

अवधि –

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कम से कम 27 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 108 , 54 , 45 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |

2 . चक्र साधना –

आज्ञा चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको आज्ञा चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “” ॐ “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और आज्ञा चक्र पर चोट करना है | { आज्ञा चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें }

अवधि –

कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |

वैज्ञानिक विश्लेषण –

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आज्ञा चक्र , आकाश , उदान प्राण तत्व , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है | आज्ञा चक्र के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |

Energetic Effects of Ajna Chakra Sadhna

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Return to spiritual order. Awakening of Intrution . Raising awairness. Activation of pineal gland Harmonal balance weather Sensitivity Brain Tumor, Cataracts, Deafness, Dyslexia, Insomnia, Far-sightedness, Short-sightedness, Sinus Problems, Tension Headaches, Allergies, Crossed eyes, Deafness, Earache, Fainting spells, Certain cases of blindness, Astigmatism, Cataracts, Glaucoma, Exotropia, scalp related problems, blood supply to the head, Cancer, Nervousness, Anxiety disorders, Insomnia, High blood pressure, Migraine headaches Nervous Breakdowns, Amnesia, Chronic tiredness, Dizziness, Hormonal imbalances, Growth or development issues, Body-image disorders. Alzheimer’s, Depression, Dizziness, Epilepsy, Multiple Sclerosis, Paralysis, Parkinson’s Disease, Schizophrenia, Immune system disorders, Cancers, Bone disorders, Nervous system disorders, Learning disorders or difficulties, Multiple personality disorder, Neurosis, Psychosis, Headache, Dizziness Migraine headaches Insomnia.

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