प्राण साधना विधि –
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यह साधना तीन चरणों में है | प्रथम चरण
सीधे पीठ के बल लेट जाएँ , नाभि से खींचते हुए , 12 बार लम्बी गहरी साँसे ले, 30 सेकण्ड से 1 मिनिट तक , साँस को रोककर रखें |
द्वितीय चरण
किसी भी आसन में बैठ जाएँ , गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधी रखें , बायीं नासिका को बंद करें , दाहिनी नासिका से साँस खींचें और बाई नासिका से छोड़ें | हर बार ऐसा ही करें ऐसा 11 बार से 21 बार तक अपनी क्षमता के अनुसार करें |
तीसरा चरण
सीधे आसमान की तरफ मुँह करले लेट जाएँ , हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़कर , साइनस , सर्दी, खासी , बुखार , गले की तकलीफ विकारों से मुक्ति साधना { मेडिटेशन } को सुने , इस समय लम्बी गहरी साँसे लेते रहे |
साधना समय – प्रतिदिन 18 मिनिट्स सुबह या शाम | अवधि – न्यूनतम 21 दिन से लेकर 3 माह तक करें , यह साधना तुरंत आराम देती हैं |
सावधानियाँ –उच्च रक्तचाप के मरीज , गर्भवती माताएँ यह ध्यान साधना न करें |
अपनी प्राण ऊर्जा को संतुलित करें, Balance Your Energy
इस प्राण योग ध्यान के माध्यम से आपके चक्र { अन्त स्त्रावी ग्रंथियों } , पञ्च तत्त्व , पञ्च प्राण , को संतुलित किया गया है, फलस्वरूप आपकी किसी भी शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को यह ध्यान संतुलित करने का कार्य करता है, प्राण योग ध्यान की तरंगे आपके आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर की तरह कार्य करती है, जिससे आपको तुरंत लाभ महसूस होने लगता है |
विधि –
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प्राण योग ध्यान को सुनना शुरू कीजिये ,सीधे आसमान की तरफ मुँह करके लेट जाएँ हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये , आँखे बंद कीजिये , अब दाएं हाथ के अंगूठे से अपनी दांयी नाक के नथुने को बंद कीजिये , और बाएं नथुने से साँस खींचते हुए यह कल्पना कीजिये की प्राण ऊर्जा आपके शरीर में आ रही है , , साँस को रोककर रखिये , जब तक घबराहट न होने लगे , साँस को रोके रखिये , फिर जब बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे फिर दाएं नथुने से बाहर निकाल दीजिये | अब बाएं नथुने को अनामिका अंगुली से बंद कीजिये , दायें नथुने से साँस खींचिए , और रोक कर रखिये , जब तक आपको घबराहट न होने लगे , अब बाएं से छोड़िये , आपको जिस तरफ से साँस लेना है, उसके विपरीत तरफ से छोड़ना है , और जिस तरफ से आपने साँस छोड़ी है, उसी तरफ से आपको लेनी है | ऐसा 11 बार करें , हर बार ज्यादा देर तक साँस रोकने का अभ्यास करें , फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें , प्राण योग ध्यान मैडिटेशन की ध्वनि को आपने सभी चक्रों पर 1 -1 मिनिट तक महसूस करे | अब आँखे खोल लीजिये , आप अपने आप को एक नयी दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण पायेगें | विशेष – ह्रदय रोगी , और उच्च रक्त चाप के मरीज , साँस रोके बिना सिर्फ आँखे बंद करके प्राण योग ध्वनि को सुने |
आज्ञा चक्र का जागरण आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे “तीसरा नेत्र” भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह 3 प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है। इसका मंत्र है ॐ। आज्ञा चक्र का रंग सफेद है। इसका तत्व आकाश तत्त्व है। इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।
आज्ञा चक्र की साधना विधि
किसी शांत स्थान पर ज्ञान मुद्रा में बैठे | शरीर को शिथिल करते हुए 15 बार लम्बी गहरी साँस लें | प्राण योग वीडियो शुरू करें , और आज्ञा चक्र से निकलने वाली ऊर्जा को देखते हुए , अपनी आँखे बंद करे, और वही ऊर्जा अपने आज्ञा चक्र पर अनुभव करें और ॐ मंत्र का मानसिक जाप करते हुए , वीडियो से निकल रही ध्वनि को अपने आज्ञा चक्र पर अनुभव करें |
समयावधि – प्रतिदिन 21 मिनिट
कालावधि– 21 दिन से लेकर 3 माह तक |
आज्ञा चक्र के जागरण के प्रभाव
1. इससे भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्ष दिखने लगते है और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं। साथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मविश्वास जाग्रत होता है जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से संपन्न कर लेते हैं।
2. जागरण से पूरा शरीर उर्जा से आप्लावित हो जाता है जिससे किसी बीमार व्यक्ति को स्पर्श करके ही रोग मुक्त कर सकते हैं।
3. किसी अपराधी प्रवृति के युवक या युवती की गलत सोंच को ख़त्म कर उसे सही राह पर लाया जा सकता है। रात दिन तनाव में रहने वाले व्यक्ति को माइण्ड फ्री और फ्रेस बनाया जा सकता है।
4. किसी की उलझी हुई गुथियों को सुलझाया जा सकता है। नशा पान करने वालों को पूर्ण स्वस्थ किया जा सकता है।
5. ज्ञान के क्षेत्र में महारथ हासिल कर सकता है। जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे ही बौद्धिक सिद्धि कहा जाता हैं।
6. आज्ञाचक्र की संगति शरीरशास्त्री आप्टिकल कायजमा, पिट्यूटरी एवं पीनियल ग्रन्थियों के साथ बिठाते है। यह ग्रन्थियाँ भ्रूमध्य की सीध में मस्तिष्क में है। इनसे स्रवित होने वाले हारमोन स्राव समस्त शरीर के अति महत्वपूर्ण मर्मस्थलों को प्रभावित करते है |
7. भाग्य और भविष्य बनाने की कुँजी हाथ लग जाती। इस स्थिति में चित की चंचलता समाप्त हो जाती है, बुद्धि में पवित्रता और शुचिता का उदय होता है, आसक्ति का अवशेष तक नहीं रहता, संकल्पशक्ति अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है तथा सत्संकल्प पूरे होने लगते है, व्यक्ति में अतीन्द्रिय अनुभूतियों और सिद्धियों का चमत्कार प्रकट होने लगता है, उसके शाप-वरदान फलित होने लगते है; वाणी में ओज, मुखमण्डल पर तेज और आँखों में चमक विराजने लगती है। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार की विशेषताएँ साधक में प्रकट और प्रत्यक्ष होती दिखाई पड़ती है।
8. आज्ञाचक्र के जागरण के समय का अनुभव बताते हुए तत्त्वदर्शी आत्मवेत्ता कहते है कि यह लगभग वैसा ही होता है, जैसा चरस, गाँजा, भाँग या एल.एस.डी. जैसे रसायनों के सेवन से प्राप्त होता है, पूर्ण जाग्रत स्थिति में जब भ्रूमध्य पर ध्यान एकाग्र किया जाता है, तो वहाँ दीपशिखा की भाँति एक ज्योति दिखाई पड़ती है।
9. आज्ञाचक्र के जागरण के बाद शेष चक्रों के उन्नयन के लिए दो प्रकार के क्रम अपनाये जाते है। एक में आज्ञाक्रम के उपरान्त विशुद्धि, अनाहत, मणिपूरित -इस क्रम में बढ़ते हुए मूलाधार तक पहुँचना पड़ता है, जबकि दूसरे में आज्ञाचक्र के बाद मूलाधार से शुरुआत कर ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्वाधिष्ठान, मणिपूरित, अनाहत होकर विशुद्धि तक पहुँचते है। इन दोनों में से किसी को भी रुचि और सुविधा के अनुसार अपनाया जा सकता है, पर दोनों ही क्रमों में आज्ञाचक्र का प्रथम जागरण अनिवार्य है, अन्यथा दूसरे चक्रों के विकास से उत्पन्न हुई शक्ति को सँभाल पाना कठिन होगा।
10. जब मनुष्य के अन्दर आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है तब मनुष्य के अंदर अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से मनुष्य के अन्दर सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और मनुष्य एक सिद्धपुरुष बन जाता है। अतः जब इस चक्र का हम ध्यान करते हैं तो हमारे शरीर में एक विशेष चुम्बकीय उर्जा का निर्माण होने लगता है उस उर्जा से हमारे अन्दर के दुर्गुण ख़त्म होकर, आपार एकाग्रता की प्राप्ति होने लगती है।
11. विचारों में दृढ़ता और दृष्टि में चमक पैदा होने लगती है। आज्ञा चक्र ध्यान प्रतिदिन करें, , , यदि आप ठीक ध्यान कर रहे हैं .. यहाँ पर ध्यान करने से आप भोजन न भी करे तब भी आप अपने भीतर अत्यधिक ऊर्जा अनुभव करेंगें, , आप जो भी कार्य करेंगे पूरी शक्ति से कर पाएंगे, , यहाँ पर ध्यान करने से संकल्प शक्ति अत्यधिक मजबूत हो जाती है।
12. आज्ञा चक्र ही मात्र एक मात्र चक्र है जिसके जाग्रत होने पर आप ब्रह्मांड की अनन्त ऊर्जा से एक हो सकते है इसे हम परमात्मा की पारलौकिक संसार का प्रवेश द्वार कह सकते है, , यहाँ जो आपके अनुभव होंगे वे अनुभव बाकि नीचे के चक्रो में कभी नहीं हो सकते, , यहाँ इस चक्र पर जब ऊर्जा पहुचती है तभी आप गहरे ध्यान में व समाधि में उतर सकते है और अनन्त आनन्द, , अनन्त ऊर्जा का अनुभव कर सकते है।
मनुष्य के अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्ति को कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे जगत मे जीव की श्रृष्टि होती है। कुण्डलिनी सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर मेरूदण्ड के सबसे निचले भाग में मुलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है। मुलाधार में सुषुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, तथा आज्ञा चक्र को जाग्रत करते हुए मस्तिष्क में स्थीत सहस्त्रार चक्र मंे पहंुच कर पुर्णंता प्रदान करती है इसी क्रिया को पुर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है। जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है मुलाधार चक्र में स्पंदन होने लगती है उस समय ऐसा प्रतित होता है जैसे विद्युत की तरंगे रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घुमते हुए उपर की ओर बढ़ रहा है। साधकांे के लिए यह एक अनोखा अनुभव होता है। जब मुलाधार से कुण्डलिनी जाग्रत होती है तब साधक को अनेको प्रकार के अलौकिक अनुभव स्वतः होने लगते हैं। जैसे अनेकों प्रकार के दृष्य दिखाई देना अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देना, शरीर मे विद्युत के झटके आना, एक ही स्थान पर फुदकना, इत्यादि अनेकों प्रकार की हरकतें शरीर मंे होने लगती है। कई बार साधक को गुरू अथवा इष्ट के दर्शन भी होते हैं। कुण्डलिनी शक्ति को जगाने के लिए प्रचिनतम् ग्रंथों मे अनेकों प्रकार की पद्धतियों का उल्लेख मिलता है। जिसमें हटयोग ध्यानयोग, राजयोग, मत्रंयोग तथा शक्तिपात आदि के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने के अनेकांे प्रयोग मिलते हैं। परंतु मात्र भस्रीका प्राणायाम के द्वारा भी साधक कुछ महिनों के अभ्यास के बाद कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में पुर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। जब मनुष्य की कुण्डलीनी जाग्रत होती है तब वह उपर की ओर उठने लगती है तथा सभी चक्रों का भेदन करते हुए सहस्त्रार चक्र तक पंहुचने के लिए बेताब होने लगती है। तब मनुष्य का मन संसारिक काम वासना से विरक्त होने लगता है और परम आनंद की अनुभुति होने लगती है। और मनुष्य के अंदर छुपे हुए रहस्य उजागर होने लगते हैं। मनुष्यों के भीतर छुपे हुए असिम और अलौकिक शक्तियों को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। आज कल पश्चिमी वैज्ञानिकों के द्वारा शरीर में छुपे हुए रहस्यों को जानने के लिए अनेकों शोध किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों मे अपार आश्चर्य जनक शक्तियों का भंडार है ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मुलाधार तथा सहस्त्रार चक्रों मे आश्चर्यजनक शक्तियों का भंडार है। आगामी अंकों में कुण्डलिनी जागरण करने की विधियो को विस्तार पुर्वक लिखने का प्रयास रहेगा जिससे कोइ भी साधक अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगा कर आत्म ज्ञान प्राप्त कर सके।
प्राण योग द्वारा कुंडलिनी जागरण सबसे सरल , सबसे शक्तिशाली
साधना विधि
सर्वप्रथम सिद्धासन में बैठ जाएं आंखें बंद करें प्राण योग मैडिटेशन को सुनना प्रारंभ कीजिए दाएं नथुने को बंद कर के बाएं नासिका से सांस उदर में भर लीजिये , इसके पश्चात रेचन क्रिया प्रारंभ कीजिये ,{ वायु को तेजी से बाहर फेंकने की प्रक्रिया } इसके पश्चात उड्डियान बन्ध लगाते हुए अश्विनी मुद्रा शुरू कीजिए अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार इस अवस्था में रहे प्रत्येक सप्ताह अभ्यास को बढ़ाते रहें इससे आपकी कुंडलिनी शक्ति जागृत होगी और प्राण का उद्गम होने से सुषुम्ना में चीटियों के सुखद अनुभव होंगे , और अतीव आनद की प्राप्ति होगी |
108 ॐ मंत्र जाप – ॐ मंत्र के माध्यम से अपना और दूसरों का इलाज कैसे करें
ॐ मंत्र के माध्यम से अपना और दूसरों का इलाज कैसे करें , ॐ इस ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली मंत्र है, क्योंकि इस मंत्र की धवनि से जो तरंगे निकलती है, वो समस्त चक्रों को संतुलित कर देती है, फलस्वरूप व्यक्ति की सभी समस्याओं का समाधान स्वः होने लगता है | ॐ से आप वैसे ही किसी का भी उपचार कर सकते है, जैसा रैकी , या प्राणिक हीलिंग में किया जाता है , परन्तु इसमें आपको 21 दिन तक साधना करनी पड़ती है, क्योकि बिना साधना के आपकी हीलिंग शक्ति पावरफुल नहीं होती , और न ही आप मरीज की नकारात्मक ऊर्जा से आपने को सुरक्षित रख पाते है | 21 दिन बाद ॐ से इलाज की प्रक्रिया सिखाई जाएगी |
समयावधि –
प्रतिदिन 26 मिनिट्स
कालावधि – 21 दिन तक साधना करें |
108 ॐ मंत्र जाप उपयोगिता
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घर में अशांति का वातावरण होना
डिप्रेशन
बार बार बीमार होना
ब्लड प्रेस्सर
सिरदर्द
बच्चों को सोने में परेशानी होना
घर में सोने पर डरावने सपने आना
नींद ना आने की समस्या
बैचेनी
बच्चों का चिडचिडा व्यवहार
एकाग्रता
स्मरण शक्ति
बात बात पर गुस्सा आना
तनाव
थकान
साधना – खुद के कल्याण हेतु
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ॐ मंत्र साधना ऐसे करें उच्चारण
1. शांत स्थान पर किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठिए।
2. आंखें बंद करके शरीर और नसों को ढीला छोड़िए।
3. 9 बार लम्बी गहरी सांसें लीजिए।
4. यूट्यूब पर दिए गए वीडियो को शुरू कीजिये और ॐ मंत्र का जाप साथ साथ करिए और इसके कंपन को पुरे शरीर पर महसूस कीजिए।
5. ॐ नाद के समाप्त होने तक ॐ मंत्र का जाप करते रहिए।
6. ॐ नाद के समाप्त होने पर अपनी आंखें खोलिए। और हाथो को आपस में रगड़कर सम्पूर्ण शरीर को अपने हाथों से प्राण ऊर्जा दीजिये , अब आपकी समस्या से आपको छुटकारा मिलता हुआ प्रतीत होगा |
विघ्न विनाशक साधना के माध्यम सेअपनी और दूसरों की बाधाओं को कैसे दूर करें
विघ्न विनाशक साधना
विनाशक साधना के माध्यम से अपना और दूसरों कैसे दूसरों की बाधाओं को कैसे दूर करें , आप वैसे ही किसी का भी उपचार कर सकते है, जैसा रैकी , या प्राणिक हीलिंग में किया जाता है , परन्तु इसमें आपको 21 दिन तक साधना करनी पड़ती है, क्योकि बिना साधना के आपकी हीलिंग शक्ति पावरफुल नहीं होती , और न ही आप मरीज की नकारात्मक ऊर्जा से आपने को सुरक्षित रख पाते है | 21 दिन बाद हीलिंग की प्रक्रिया सिखाई जाएगी | यह एक शक्ति शाली विधि है जिससे हमारे कार्यों में आने वाली सारी रूकावटे और समस्याएं दूर हो जाती है इसे करने के बाद हमारें कामो में आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती है और काम आसानी से होने लगते हैं। आपको हीलिंग सिंबल भेजा जा रहा है, साधना विधि के लिए हमारे यूट्यूब चैनल के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में निर्देश देखें |
विघ्न विनाशक साधना
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1. शांत स्थान पर किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठिए।
2. आंखें बंद करके शरीर और नसों को ढीला छोड़िए।
3. 9 बार लम्बी गहरी सांसें लीजिए।
4. यूट्यूब पर दिए गए वीडियो को शुरू कीजिये और विघ्न विनाशक साधना मंत्र का जाप साथ साथ करिए और इसके कंपन को पुरे शरीर पर महसूस कीजिए।
5. विघ्न विनाशक साधना मंत्र के समाप्त होने पर अपनी आंखें खोलिए। और हाथो को आपस में रगड़कर सम्पूर्ण शरीर को अपने हाथों से प्राण ऊर्जा दीजिये |
प्रबल इच्छाशक्ति से साधना करने पर सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती हैं। तप में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ प्राण योग में निहित हैं। इनमें ‘त्राटक’ उपासना सर्वोपरि है। त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है।
साधना विधि
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यह सिद्धि रात्रि में अथवा किसी अँधेरे वाले स्थान पर करना चाहिए। प्रतिदिन लगभग एक निश्चित समय पर 18 मिनट तक करना चाहिए। स्थान शांत एकांत ही रहना चाहिए। साधना करते समय किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शारीरिक शुद्धि व स्वच्छ ढीले कपड़े पहनकर किसी आसन पर बैठ जाइए। अपने आसन से लगभग तीन फुट की दूरी पर अपना मोबाइल को आप अपनी आँखों अथवा चेहरे की ऊँचाई पर रखिए। अर्थात एक समान दूरी पर, रखें प्राण योग त्राटक के ध्वनि को सुनना शुरू करे { हेड फ़ोन का प्रयोग जरुरी है } आगे एकाग्र मन से व स्थिर आँखों से मोबाइल पर जो चक्र चल रहा है, उस पर बिना पलक झपकाए , बीचों बीच देखना शुरू करें , जब तक आँखों में कोई अधिक कठिनाई नहीं हो तब तक पलक नहीं गिराएँ। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखें। धीरे-धीरे आपको इस ऊर्जा का तेज बढ़ता हुआ दिखाई देगा। कुछ दिनों उपरांत आपको ज्योति के प्रकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देगा। इस स्थिति के पश्चात इस ऊर्जा चक्र पर अपने संकल्प डालें , यह कल्पना करें की आपका विचार { जिसे आप पूरा करना चाहते है }ऊर्जा चक्र पर जाकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल रहा है, फिर आप देखेंगे कि संकल्पित व्यक्ति व कार्य भी प्रकाशवान होने लगा है , आपके विचार के अनुरूप ही घटनाएँ जीवन में घटित होने लगेंगी। इस अवस्था के साथ ही आपकी आँखों में एक विशिष्ट तरह का तेज आ जाएगा। जब आप किसी पर नजरें डालेंगे, तो वह आपके मनोनुकूल कार्य करने लगेगा।
परिणाम
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1. त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है।
2. इससे विचारों का संप्रेषण होगा , अर्थात आप टेलीपेथी में पारंगत हो जायेगे |
3. त्राटक से दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करने लगेंगे |
4. सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना शुरू होगा |
5. दूरस्थ दृश्यों को देखा जा सकेगा | 6. यह साधना लगातार तीन महीने तक करने के बाद उसके प्रभावों का अनुभव साधक को मिलने लगता है। इस साधना में उपासक की असीम श्रद्धा, धैर्य के अतिरिक्त उसकी पवित्रता भी आवश्यक है।
हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिनमे प्रथम मूलाधार चक्र है , जो पृथ्वी तत्त्व को समाहित किये हुए है मूलाधार चक्र के देवी देवता गणेश जी , और रिद्धि -सिद्धि है, जिनकी साधना से कोई भी व्यक्ति अपनी समृद्धि के द्वार खोल सकता है | इस चक्र की ऊर्जा से आप अपने मन वांछित फल प्राप्त कर सकते है |
मूलाधार चक्र : स्थिति यह शरीर का पहला चक्र है। रीढ़ की अस्थि के अंतिम विन्दु पर चार पंखुरियों वाला यह “आधार चक्र” है। जिसका रंग लाल है | जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है, उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : “लं”
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वाधित या असंतुलन का परीक्षण
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आपका मूलाधार चक्र या पृथ्वी तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –
1 . क्या आप आर्थिक रूप से परेशान रहते है |
2 . क्या आप कान की समस्या से परेशान है |
3 . क्या आपका पसंदीदा स्वाद मीठा है |
4 . क्या आपका पसंदीदा रंग पीला है |
5 . क्या आप अवसाद, चिंता, कुंठा ,उच्च रक्तचाप, मुँह , ओंठ , मसल्स या फिर किडनी से जुड़ी किसी भी एक समस्या से पीड़ित है |
6 . क्या आप अधिकांश समय इसी चिंता में रहते हैं कि किस तरह अपने जीवन में मौजूद धन-संबंधी परेशानियों को समाप्त कर सकते हैं। अगर इनमे से किसी एक प्रश्न का उत्तर “हाँ ” में है, तो आपका मूलाधार चक्र वाधित है | इसे सक्रिय करने के लिए साधना और ध्यान की आवश्यकता है |
धन प्राप्ति और मूलाधार
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धन भी एक तरह की ऊर्जा है, जिसकी एक निश्चित फ्रीक्वेंसी होती है, यही फ्रीक्वेंसी मूलाधार चक्र और पृथ्वी तत्त्व की भी होती है | ऊर्जा के नियम के अनुसार समान गुण वाली वस्तुयें , समान गुण वाली वस्तुओँ को आकर्षित करती है | इस चक्र की शक्ति 9 नंबर की संख्या में निहित है |
मूलाधार चक्र को संतुलित करने के उपाय
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अगर आप मूलाधार चक्र को संतुलित कर लेते है, तो आपकी आर्थिक समस्या का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |
1 . चक्र ध्यान
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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर मूलाधार चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर मूलाधार चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को मूलाधार चक्र पर महसूस करें |
अवधि –
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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |
2 . चक्र साधना – मूलाधार चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको मूलाधर चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “”लं “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और मूलाधर चक्र पर चोट करना है | { मूलाधर चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें }
साधना समय –
मूलाधार चक्र का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तक होता है, इस समय की गयी साधना विशेष फलदायी होती है |
अवधि – कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |
वैज्ञानिक विश्लेषण
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मूलाधार चक्र , पृथ्वी , बुध्ध ग्रह , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है | मूलाधार के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |
महान वैज्ञानिक निकोलो टेस्ला ने लिखा है “If you want to find the secrets of the universe, think in terms of energy, frequency and vibration.” ― Nikola Tesla
– हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिनमे द्वितीय स्वाधिष्ठान चक्र है , स्वाधिष्ठान चक्र के देवी देवता विष्णु जी ,और राकिनी है, इसका प्राण व्यान और तत्त्व आकाश है , { जबकि योग विज्ञानं इसका तत्त्व जल को मानता है |
स्वाधिष्ठान चक्र : स्थिति यह शरीर का दूसरा चक्र है। रीढ़ की अस्थि के काकिसकस के स्तर पर स्थित है , प्रजनन अंगों की ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
मंत्र : “वं ”
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परीक्षण
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क्या आपका स्वाधिष्ठान चक्र असंतुलित है ?????
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आपका स्वाधिष्ठान चक्र और आकाश तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –
1 . क्या आप प्रजनन अंग, त्वचा , गला, नासिका की किसी भी समस्या से ग्रसित है |
2 . क्या आप प्रजनन अंगों की किसी भी की समस्या से परेशान है |
4 . क्या आपका पसंदीदा रंग सफ़ेद , भूरा , स्लेटी या ब्राउन है |
5 . क्या आप नपुंसकता , शीघ्र पतन , मांसपेशियों में दर्द , स्वेत प्रदर , अनियमित मासिक स्त्राव , पीठ दर्द किसी भी एक समस्या से पीड़ित है |
स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करने के उपाय
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अगर आप स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित कर लेते है, तो आपकी समस्या का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |
1 . चक्र ध्यान
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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर स्वाधिष्ठान चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को स्वाधिष्ठान चक्र पर महसूस करें |
अवधि –
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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |
2 . चक्र साधना –
स्वाधिष्ठान चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको स्वाधिष्ठान चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “” “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और स्वाधिष्ठान चक्र पर चोट करना है | { स्वाधिष्ठान चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें } चक्र ध्यान से चक्र संतुलित होता है, जिससे आपको चक्र संतुलन से संबंधित समस्त बीमारियों से मुक्ति मिलती है | जबकि चक्र साधना से आपको चक्र से सम्बंधित सिद्धियां प्राप्त होती है | साधना समय – स्वाधिष्ठान चक्र का समय सुबह 3 बजे से 7 बजे { AM } तक होता है, इस समय की गयी साधना विशेष फलदायी होती है |
अवधि –
कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |
वैज्ञानिक विश्लेषण –
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स्वाधिष्ठान चक्र , आकाश तत्व , शुक्र ग्रह और व्यान प्राण तत्व की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है | स्वाधिष्ठान चक्र , आकाश तत्व , शुक्र ग्रह और व्यान प्राण तत्व के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |
हमारा शरीर अनेक रहस्यों से भरा पड़ा है | जिसमे 7 प्रमुख ऊर्जा स्रोत है , जिन्हे चक्र कहते है, वैज्ञानिक इन्हे अंत स्त्रावी ग्रंथिया कहते है जिनमे तीसरा मणिपुर चक्र है , जो पृथ्वी तत्त्व को समाहित किये हुए है मणिपुर चक्र के देवता रूद्र , और देवी राकिनी है, मणिपुर चक्र विभिन्न अवयवों , संस्थानों तथा जीवन की प्रक्रियाओं को नियमित करके सम्पूर्ण शरीर में प्राण ऊर्जा को बनाये रखता है, इस चक्र की ऊर्जा से व्यक्ति सक्रियता , शक्ति , इच्छा तथा उपलब्धियां प्राप्त करके अपने मन वांछित फल प्राप्त कर सकता है | मणिपुर चक्र : स्थिति यह शरीर का तीसरा चक्र है। मणिपुर चक्र नाभि के पीछे रीढ़ की हड्डी में स्थित है , 10 पंखुरियों वाला यह “पीले रंग ” का है। मणिपुर चक्र के जागरण से जो शक्ति मिलती है, उससे निर्माण और विनाश , आत्म सुरक्षा , गुप्त खजाने की प्राप्ति , अग्नि से भय का नाश , अपने भौतिक शरीर का पूर्ण ज्ञान , व्याधियों से मुक्ति , तथा प्राण ऊर्जा का असीम भंडार आदि अनेक सिद्धियां निहित है |
मंत्र : — “रं “
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वाधित या असंतुलन का परीक्षण
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आपका मणिपुर चक्र चक्र या पृथ्वी तत्त्व असंतुलित है, इसका पता आप इस परिक्षण से लगा सकते है –
1 . क्या आप निष्क्रिय और शक्तिहीन महसूस करते है |
2 . क्या आप कान की समस्या से परेशान है |
3 . क्या आपको मीठा स्वाद आकर्षित करता है |
4 . क्या आपका सबसे पसंदीदा रंग पीला है |
5 . क्या आप अवसाद, और उदर से सम्बंधित व्याधियों से पीड़ित है |
6. क्या आप निम्न लिखित किसी भी एक समस्या से पीड़ित है,
DNA Regeneration Abdominal cramps. Food Allergies, Bulimia, Diabetes, Digestive problems, Gall stones, Hepatitis, Liver Disease, Acidity, Pancreatitis, Peptic Ulcer, Stomach problems, Jaundice, Shingles, Gall bladder problems, Anemia, Heartburn, Gastritis, Lowered resistance to diseases, Chronic tiredness Gas, Spastic colon, अगर इनमे से किसी एक प्रश्न का उत्तर “हाँ ” में है, तो आपका मणिपुर चक्र वाधित है | इसे सक्रिय करने के लिए साधना और ध्यान की आवश्यकता है |
मणिपुर चक्र को संतुलित करने के उपाय
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अगर आप मणिपुर चक्र को संतुलित कर लेते है, तो अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाता है , इसकी विधियाँ निम्न लिखित है |
1 . चक्र ध्यान
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सर्वप्रथम किसी भी आसन में बैठ जाये, या पीठ के बल लेट जाएँ , फिर नौ बार लम्बी गहरी साँस लें , फिर मणिपुर चक्र पर ध्यान लगाये और यूट्यूब पर मणिपुर चक्र ध्यान साधना की ध्वनि को चालू करके , उस ध्वनि को मणिपुर चक्र पर महसूस करें |
अवधि
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कम से कम 18 मिनिट ध्यान करें , इसके अलावा आप यह साधना 27 , 45 , 54 मिनिट्स भी कर सकते है | जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतना ज्यादा लाभ होगा |
2 . चक्र साधना –
मणिपुर चक्र को संतुलित करने का ध्यान और साधना अलग अलग है | ध्यान के आपको मणिपुर चक्र पर सिर्फ ध्यान लगाना है, और धवनि महसूस करनी है, वही साधना में आपको “”रं “” मंत्र के विडिओ को यूट्यूब पर चालू करके मंत्र को साथ -साथ आपको दोहराना है, और मणिपुर चक्र पर चोट करना है | { मणिपुर चक्र को खीचने और छोड़ने की क्रिया करें }
साधना समय
मणिपुर चक्र का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तक होता है, इस समय की गयी साधना विशेष फलदायी होती है |
अवधि – कम से कम 21 दिन और अधिकतम 3 माह तक इस साधना को करने से मनवांछित परिणाम मिलते है |
वैज्ञानिक विश्लेषण
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मणिपुर चक्र , पृथ्वी , समान प्राण तत्व , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा साधना और ध्यान बनाया गया है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है |
मणिपुर चक्र के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित अनेक लोग , एक – दो दिन में ही ठीक होते देखे गये है |