Jai Ho Vijay Ho
Spiritual & PranYog Healing Centre Bhopal {MP} 462042
09 Nov 2020

गले की खराश, साइनस , सर्दी, खासी — प्राणयोग द्वारा तुरंत आराम |

प्राण साधना विधि –
============
यह साधना तीन चरणों में है |
प्रथम चरण

सीधे पीठ के बल लेट जाएँ , नाभि से खींचते हुए , 12 बार लम्बी गहरी साँसे ले, 30 सेकण्ड से 1 मिनिट तक , साँस को रोककर रखें |

द्वितीय चरण

किसी भी आसन में बैठ जाएँ , गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधी रखें , बायीं नासिका को बंद करें , दाहिनी नासिका से साँस खींचें और बाई नासिका से छोड़ें | हर बार ऐसा ही करें ऐसा 11 बार से 21 बार तक अपनी क्षमता के अनुसार करें |

तीसरा चरण

सीधे आसमान की तरफ मुँह करले लेट जाएँ , हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़कर , साइनस , सर्दी, खासी , बुखार , गले की तकलीफ विकारों से मुक्ति साधना { मेडिटेशन } को सुने , इस समय लम्बी गहरी साँसे लेते रहे |

साधना समय – प्रतिदिन 18 मिनिट्स सुबह या शाम |
अवधि – न्यूनतम 21 दिन से लेकर 3 माह तक करें , यह साधना तुरंत आराम देती हैं |

सावधानियाँ – उच्च रक्तचाप के मरीज , गर्भवती माताएँ यह ध्यान साधना न करें |

01 Nov 2020

पिरामिड -अद्भुत , अद्वितीय , अविश्वसनीय परिणाम

पिरामिड शब्द ग्रीक भाषा के पायरा से बना है जिसका अर्थ होता है – ‘अग्नि’ तथा मिड का अर्थ है – ‘केन्द्र’ । इस प्रकार पिरामिड शब्द का अर्थ है – ‘केन्द्र में अग्नि वाला पात्र‘। जैसा कि हम सभी जानते है कि प्राचीन काल से ही अग्नि को ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार पिरामिड का सामान्य शाब्दिक अर्थ है ‘अग्निशिखा’’ अर्थात एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा जो अग्नि के समान हमारी शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक अशुद्धियों का नाश करके हमें निर्मल और पवित्र कर सकती है।

 

पिरामिड यंत्र अंतरिक्ष से आने वाली ब्रह्मांडीय किरणों को संग्रहित करके उन्हें कल्याणकारी किरणों के रूप में परिवर्तित का कार्य निरंतर करती रहती है पिरामिड यंत्र के पाँच शीर्षो से प्राण ऊर्जा सर्पाकार कुण्डिलिनी के रूप में सदैव ऊपर की ओर बहती रहती है। प्राचीन काल से ही पिरामिड का उपयोग , चिकित्सा , ग्रह शांति , पंचतत्व संतुलन ,नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा , गृहशांति, वास्तुदोष , आध्यात्मिक प्रगति , वस्तुओं के संरक्षण , शत्रु से रक्षा , सुख -शांति और समृद्धि के लिए किया जाता रहा है |  
पिरामिड में ‘कॉस्मिक विण्ड’ चलती रहती है, जो कि पिरामिड की आज तक ज्ञात एवं अज्ञात दोनों प्रकार की शक्तियों का पुंज है। ब्रह्मांड में व्याप्त सभी शक्तियों का संग्रह एवं मेल पिरामिड में होता है।जो विकारों को रोक सकती है तथा विकारों से सुरक्षित भी रख सकती है। मेनली पामर हॉल ने अपनी पुस्तक ‘द सीक्रेट टीचिंग ऑफ ऑल एजीज’ में कहा है- *ये भव्य पिरामिड विश्व के शाश्वत्‌ ज्ञान का जीवंत संयोजन हैं। इसके कोने शांति, गहनता, बुद्धिमत्ता तथा सच्चाई के प्रतीक हैं। इनके तिकोनिया भाग त्रिस्तरीय आत्मिक शक्ति के प्रतीक हैं। पिरामिडों के परिसर में ब्रह्मांड की ऊर्जा का क्षेत्र स्थित है। इस परिसर में उत्पन्न प्रवाह विशेष, इलेक्ट्रो-मेग्नेटिक प्रति ऊर्जा को उद्भवित करता है तथा ऊर्जा को वहन करता है।* इस संबंध में डॉ. फ्लेनगन लिखते हैं- *पिरामिड विशेष भौमितिक आकार के फलस्वरूप उसके पाँचों कोनों (चार बाजू के तथा एक शिखर को) में एक विशिष्ट प्रकार का सूक्ष्म किरणोत्सर्ग उत्पन्न होता है।
यह ऊर्जा पिरामिड की एक-तिहाई ऊँचाई पर स्थित ‘किंग्स चेम्बर’ नामक विस्तार में घनीभूत होती है। जिस बिन्दु पर यह ऊर्जा केन्द्रित होती है, उस बिन्दु को ‘फोकल जाइट’ कहते हैं। इस बिन्दु पर स्थित अणु इस ऊर्जा को अवशोषित करते हैं, जिसके फलस्वरूप अणु के अंतर्गत छिपे परमाणु स्पन्दित होते हैं और परमाणु की भ्रमण कक्षा में स्थित इलेक्ट्रॉन अपनी भ्रमण कक्षा (वर्तुल) को छोड़कर बाहर निकल जाते हैं।*

इसके कारण प्रचंड ऊर्जा (ऐटमिक-ऐनर्जी) उत्पन्न होती है। ऐसी प्रचंड ऊर्जा पिरामिड के पाँचों कोनों में से बाहर फैलती है इससे पिरामिड के आसपास का क्षेत्र एवं वातावरण आवेशित हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न ऊर्जा को मानव जाति के लाभार्थ एवं विकासार्थ प्रयोजित करने के उपायों के संबंध में आधुनिक विज्ञानी खोज कर रहे हैं। हजारों सालों से पिरामिड में सुरक्षित मृत देहों की , इजिप्ट के पिरामिडों की चमत्कारिक शक्ति का एकमात्र कारण उसकी विशिष्ट भौमितिक आकृति तथा उसकी संरचना है। मंदिर की आकृति, मस्जिद के गुम्बजों, चर्च के मीनारों की टोच, बौद्ध धर्म के पेगोडा के आकार, इसी संरचना पर आधारित हैं। इन स्थलों में बैठने से हमें जिस शांति का अनुभव होता है, उसका कारण यह है कि वहाँ कोई शक्ति विशेष प्रवाहित हो रही है। शक्ति विशेष के इस प्रवाह का कारण इन रचनाओं के ऊपरी हिस्से की विशिष्ट आकृतियाँ हैं।

भारत में पिरामिड :
 रेखा गणित का जन्म भारत में हुआ था। यदि सिंधु घाटी की सभ्यता बची रहती तो निश्चित ही हमें पिरामिडों के बारे में खोज करने की जरूरत नहीं होती। बलूचिस्तान से लेकर कश्मीर और कश्मीर से लेकर नर्मदा गोदावरी के तट भव्य मंदिरों और महलों का मध्यकाल में जो विध्वंस किया ‍गया उसके अब अवशेष भी नहीं बचे हैं। 

कैलाश पर्वत एक पिरामिडनुमा पर्वत ही है। उसे देखकर ही प्राचीनकाल में हिन्दुओं ने अपने मंदिरों, महलों आदि की स्थापना की थी। सनातन धर्म के मंदिरों की छत पर बनी त्रिकोणीय आकृति उन्हीं प्रयोगों में से एक है। जिसे वास्तुशास्त्र एवं वैज्ञानिक भाषा में पिरामिड कहते हैं।
असम में भी है पिरामिड :
असम के शिबसागर जिले के चारडियो में हैं अहोम राजाओं की विश्‍वप्रसिद्ध 39 कब्रें। इस क्षेत्र को ‘मोइडम’ कहा जाता है। बताया जाता है कि उनका आकार भी पिरामिडनुमा है और उनमें रखा है अहोम राजाओं का खजाना। अहोम राजाओं का शासन 1226 से 1828 तक रहा था। उनके शासन का अंत होने के बाद उनके खजाने को लूटने के लिए मुगलों ने कई अभियान चलाए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।
कहते हैं कि इस खजाने को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मुगलों ने प्रयास किए। सेनापति मीर जुमला ने उनकी कब्रों की खुदाई करवाना शुरू कर दिया। उसने वहां स्थित कई मोइडमों को तहस-नहस करवा दिया, लेकिन हमले के चंद दिनों बाद ही मीर की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई।

इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस कब्र को खोदकर यहां के रहस्य को जानने का प्रयास किया लेकिन उनकी भी मौत हो गई। फिर एक बार म्यांमार के सैनिकों ने हमला कर कब्र के खजाने को लूटने का प्रयास किया लेकिन उनको खून की उल्टियां शुरू हो गईं और वे सभी मारे गए।

39 अहोम शासक इन पिरामिडों में बनी कब्रों में चिरनिद्रा में सो रहे हैं। इन राजाओं को जिसने भी जगाने की कोशिश की, उसको मौत की नींद सोना पड़ा है। इन मोइडमों के साथ रहस्यों और दौलत की ऐसी दुनिया लिपटी हुई है कि जिसकी वजह से इन कब्रों पर बार-बार आक्रमण करने के साथ इनसे छेड़खानी की गई। जिसने भी उन कब्रों पर बर्बादी की लकीर खींची, मौत ने उसे गले लगा लिया।

यदि आप प्राचीनकाल के मंदिरों या आज के दक्षिण भारतीय मंदिरों की रचना देखेंगे तो जानेंगे कि सभी कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। दक्षिण भारत के मंदिरों के सामने अथवा चारों कोनों में पिरामिड आकृति के गोपुर इसी उद्देश्य से बनाए गए हैं कि व्यक्ति को उससे भरपूर ऊर्जा मिलती रहे। ये गोपुर एवं शिखर इस प्रकार से बनाए गए हैं ताकि मंदिर में आने-जाने वाले भक्तों के चारों ओर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का विशाल एवं प्राकृतिक आवरण तैयार हो जाए।
 

आप जानते ही हैं कि ऋषि-मुनियों की कुटिया भी उसी आकार की होती थी। प्राचीन मकानों की छतें भी कुछ इसी तरह की होती थीं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के घर पिरामिडनुमा ही पाए जाते हैं।

हालांकि जानकार लोग कहते हैं कि आज से लगभग 5,000 वर्ष पूर्व जब मिस्र में पिरामिडों का निर्माण हुआ, तब भारत में सर्वत्र विशालकाल तुंग वृक्षों वाले वन थे तथा तत्कालीन भारत की जलवायु पूर्णत: संतुलित, उत्तम तथा आरोग्यप्रद थी। इस कारण भारत में पिरामिड बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके विपरीत मिस्र के गर्म रेगिस्तान में वृक्षावली तथा जल के अभाव की स्‍थिति में पिरामिड बनाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। पिरामिडों में एक और जहां पीने के जल का संरक्षण किया जाता था तो दूसरी ओर उससे बिजली भी उत्पादित ‍की जाती थी।

पिरामिडों में ही शव क्यों रखे जाते हैं ?
मिश्र के पिरमिडों में रखे शव (ममी) आज तक सुरक्षित हैं। पिरामिड में प्रकाश, जलवायु तथा ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रूप में रहता है जिसके चलते कोई भी वस्तु पिरामिड के पास रखने मात्र से खराब नहीं होती है । यह रहस्य प्राचीन काल के लोग जानते थे। इसीलिए वे अपनी कब्रों को पिरामिडनुमा बनाते थे और उसको इतना भव्य आकार देते थे कि वह हजारों वर्ष तक कायम रहे।
इस प्रकार पिरामिड विद्या अमरता की विद्या है। प्रतिदिन कुछ समय तक पिरापिड के पास रहने से व्यक्ति की बढ़ती उम्र रुक जाती है |
पिरामिड पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि पिरामिड का भू-चुम्बकत्व एवं ब्रह्मांडीय तरंगों से विशिष्ट संबंध है। उत्तर-दक्षिण गोलार्धों को मिलाने वाली रेखा पृथ्वी की चुम्बक रेखा है। चुम्बकीय शक्तियां विद्युत-तरंगों से सीधी जुडी हुई हैं, जो यह दर्शाती हैं कि ब्रह्मांड में बिखरी मैग्नेटोस्फीयर में विद्यमान चुम्बकीय किरणों को संचित करने की अभूतपूर्व क्षमता पिरामिड में है। यही किरणें एकत्रित होकर अपना प्रभाव अंदर विद्यमान वस्तुओं या जीवधारियों पर डालती हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन लोग इसके महत्व को जानते थे।

यह ब्रह्मांड में व्याप्त ज्ञात व अज्ञात शक्तियों को स्वयं में समाहित कर एक ऊर्जायुक्त वातावरण तैयार करने में सक्षम है, जो जीवित या मृत, जड़ व चेतन सभी तरह की चीजों को प्रभावित करता है।

मस्तिष्क पर प्रयोग


यदि पिरामिड का प्रयोग सिर के ऊपर किया जाये तो इससे मस्तिष्क पर सकारात्क प्रभाव पड़ता है। अल्फ़ा तरंगों का प्रवाह बढ़ जाता है , उदान प्राण का संतुलन होकर नकारात्मक चिन्तन दूर होकर मन में अच्छे विचार उत्पन्न होने लगते हैं, सिर दर्द , बालों का गिरना , बालों का सफ़ेद होना , नींद न आना , अवसाद , चिड़चिड़ापन , मानसिक एकाग्रता, मेमोरी की समस्या ,तनाव, माइग्रेन, , लकवा , डिमेन्शिया , चिंता  , थकान , बुरे विचार , आँखों की समस्या , कानों की बीमारी आदि समस्याओं से छुटकारा मिलता है |विद्यार्थियों के लिये भी पिरामिड चिकित्सा अत्यन्त उपयोगी है। इससे उनकी सीखने की क्षमता, याद करने की क्षमता को काफी हद तक विकसित किया जा सकता है। यदि पिरामिड कुर्सी के नीचे पिरामिड रखकर विषय को याद करें, तो इससे उन्हें अपना विषय जल्दी याद हो सकता है ओर उनकी बुद्धि का विकास हो सकता है।

शारीरिक दर्द से मुक्ति
पिरामिड के उपयोग से शरीर के किसी भी अंग में होने वाले दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है | दर्द वाले स्थान पर पिरामिड रखने और धीरे धीरे हलके हाथ से पिरामिड से मसाज करने पर दर्द से तुरंत राहत मिलती है |

जल को आरोग्यप्रद बनाना

भारतीय संस्कृति में पानी को देवता मानकर उसकी पूजा का विधान किया गया है, हमारे वेद पानी को अमृत मानकर उससे किसी भी समस्या का निदान करने की महिमा से भरे पड़े है , हजारों वर्षों से हमारी पवित्र -पावन नदियां  हमारी सभी समस्याओं के समय हमें सम्बल प्रदान करती रही है, आज भी गंगा जल से कोरोना के इलाज की बात की जा रही है | हमारी संस्कृति की विशेषताओं को वैज्ञानिक प्रमाणों से सिद्ध करके अनेक वैज्ञानिको ने विश्व भर में प्रसिद्धि प्राप्त की है, इनमे डॉ. ओट्टो वानबर्ग , डॉ।  बेड़निरिच , डॉ. मसारू इमेटो के नाम प्रमुख है | डॉ. ओट्टो वानबर्ग ने अल्कलाइन पानी से कैंसर सहित अनेक बिमारियों पर विजय प्राप्त की |  अल्कलाइन पानी जीवन का बहुत बड़ा स्त्रोत है। साधारण पानी पीने की तुलना में जब हम अल्कलाइन पानी पीते हैं तो यह शरीर में अम्लीय पदार्थ को प्रभावहीन करके उन्हें घुलनशील बना देता है जो मूत्र और पसीने के रूप में शरीर के बाहर निकल जाता है। यही कारण है कि अल्कलाइन पानी को लाख दुखों की एक दवा माना गया है कई बीमारियों का मुख्य कारण वह अम्लीय व्यर्थ पदार्थ होते हैं जिनका शरीर से निष्कासन नहीं हो पाता और वह शरीर के मुख्य भागों में जमा हो जाते हैं और फिर धीरे धीरे अपने आस पास की कोशिकाओं में भी फैलने लगते हैं , अम्लीय व्यर्थ पदार्थ के कारण कोशिकाओं को ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हो जाती है , फलस्वरूप जीवित शरीर में प्राण ऊर्जा के बाधित होने से शरीर के अंगों की काम करने की क्षमता कम होने से  वायरस के संक्रमण का खतरा ,कैंसर, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप , मधुमेह, गुर्दों की बीमारियां, गठिया, अर्थराइटिस, कब्ज,हैजा,मोटापा, सर दर्द, त्वचा रोग, त्वचा की एलर्जी, दमा और अंत में मृत्यु की प्रक्रिया शुरू हो जाती है , इसलिए इस परिस्थिति को रोकने के लिए अल्कलाइन पानी पीकर अम्लीय व्यर्थ पदार्थ के जमा होने से हमें रोकथाम करनी चाहिए। सामान्यता अल्कलाइन पानी को विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसे इत्यादि जिनका कारण अम्लीय व्यर्थ पदार्थ का बनना और शरीर में जमा होना है। स्वस्थ्य कोशिका क्षारीय और कैंसर कोशिका अम्लीय होती है। विश्व को भारत द्वारा भेजी जा रही दवा हड्रोक्लोरोक्वीन भी शरीर को अल्कलाइन बनाने का कार्य करती है, जिससे संक्रमण समाप्त हो जाता है |

पिरामिड को जल के पात्र के ऊपर रख देने से 8 घंटे के अन्दर ही जल अत्यधिक आरोग्यप्रद, एल्कलाइन , मीठा और स्वादयुक्त हो जाता है।
खाद्य पदार्थ जैसे की फल, सब्जियाँ, दूध, दही, मिठाई , इत्यादि के ऊपर पिरामिड रख देने से वे आरोग्यप्रद एवं अधिक स्वादयुक्त हो जाते हैं तथा उनकी गुणवत्ता में भी अत्यधिक वृद्धि हो जाती है और वे लम्बे समय तक ताजे बने रहते हैं। फलों से जहरीले केमिकल्स का असर कम हो जाता है |

मैडिटेशन ,उपासना, प्रार्थना में उपयोगिता

पिरामिड में प्राण योग चिकित्सा { वाइब्रेशन , एनर्जी , फ्रीक्वेंसी }   सीक्रेट ज्योमेट्री , क्रिस्टल हीलिंग , धातु विज्ञानं , एनर्जी मेडिसिन , ओरगॉन हीलिंग , लिथोथेरेपी,  मंत्र चिकित्सा, पिरामिड विज्ञान आदि के सहयोग लिया जाता है | यह व्यक्ति और उसके घर की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करके उसके वातावरण को शुद्ध करता है |
पिरामिड ,से प्राण ऊर्जा , और वाइब्रेशन के माध्यम से ,मानव मस्तिष्क में तरंगें पैदा होती हैं जिन्हे साइट्रानिक वेब फ्रंट कहते हैं। इन तरंगों के अहसास को मानव मस्तिष्क के न्यूरॉन ग्रहण कर लेते हैं। हमारे मस्तिष्क की अल्फा तरंगों की आवृति इन साइट्रानिक तरंगों की आवृति जैसी होने के कारण हमारा मस्तिष्क तरंगों को पकड़ लेता है | इन तरंगों से मैडिटेशन और साधना की सिद्धि बहुत शीघ्र होती है |

अनिद्रा रोग

पिरामिड से निकलने वाली प्राण ऊर्जा शरीर के समस्त अवयवों की ऊर्जा को नियमित कर देती है , जिससे समस्त अंग ठीक तरह से कार्य करने लगते है , फलस्वरूप व्यक्ति को अनिद्रा रोग से मुक्ति मिल जाती है | अच्छी नींद लाने के लिए पिरामिड को सर के पास अथवा पलंग के नीचे रखे |

पौधों की वृद्धि

पिरामिड से चार्ज किए गए जल को पेड़ -पौधों में डालने से पैदावार बहुत अच्छी होती है, और जल्दी विकास होता है |

पेट पर प्रयोग

पेट की इन सभी समस्याओं का अचूक इलाज

एसिडिटी

क़ब्ज़

गैस की समस्या

उलटी दस्त

पेट दर्द

पेट फूलना

पेट में भारीपन

जी मचलाना

अपच

भूख कम लगना

हिचकी आना

आदि समस्याओं में पिरामिड तुरंत आराम प्रदान करता है |

धन वृद्धि

धन भी एक तरह की ऊर्जा है, जिसकी एक निश्चित फ्रीक्वेंसी होती है, यही फ्रीक्वेंसी मूलाधार चक्र और पृथ्वी तत्त्व की भी होती है | मूलाधार के असन्तुलन की वजह से बीमारी से पीड़ित ,ऊर्जा के नियम के अनुसार समान गुण वाली वस्तुयें , समान गुण वाली वस्तुओँ को आकर्षित करती है |
पिरामिड मूलाधार चक्र , पृथ्वी , बुध्ध ग्रह , की फ्रीक्वेंसी के आधार पर यह प्राण ऊर्जा को संतुलित करता है, इस वाइब्रेशन पर बहुत अद्भुत और चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होते है |  

मासिक धर्म की समस्याओं से मुक्ति पायें

कमर दर्द

पेट दर्द

पीठ में दर्द होना

चिड़चिड़ापन

मासिक धर्म के समय सा उससे पहले चेहरे पर मुंहासों का होना

थकान

बार-बार पेशाब की इच्छा

सिर व पेडू में दर्द

कब्ज

स्तनों में तनाव

और कभी –कभी पैरों में सूजन

माहवारी न होना या देर से आरंभ होना

भारी रक्तस्राव

माहवारी से पहले तनाव /कष्ट

मूड स्विंग

वजन में तेजी से परिवर्तन होना

अत्यधिक नीँद आना , या नींद न आना

आदि समस्याओं से मुक्ति पाएं |

पिरामिड द्वारा आपके चक्रों के असंतुलन को प्राण ऊर्जा के माध्यम से ठीक किया जाया है, यह प्राण ऊर्जा आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर का कार्य करती है | हमारे शरीर में विद्यमान सात चक्र हमारी अंत स्रावी ग्रंथियाँ है, जो मासिक धर्म के समय असंतुलित हार्मोन्स का स्त्राव करती है, पिरामिड एस्ट्रोजन , प्रोजेस्ट्रॉन , थाइरॉक्सिन आदि को संतुलित करता है | जिससे मासिक धर्म की समस्यायें दूर होती है | इसके आलावा , पिरामिड समान और अपान प्राण को भी संतुलित करता है, जिससे प्रजनन अंग की समस्या तेज़ी से ठीक होती है, इसके अलावा , प्राण ऊर्जा द्वारा जल तत्त्व को संतुलित किया गया है, जिससे मासिक धर्म का सम्बन्ध है |

रेडिएशन से मुक्ति

पिरामिड से निकलने वाली दिव्य प्राण ऊर्जा की शक्ति मोबाइल , लैपटॉप , मोबाइल टॉवर , टेलीविज़न से निकलने वाली हानिकारक तरंगो को रोक लेती है, और व्यक्ति हानिकारक रेडिएशन के दुष्प्रभाव से बच जाता है, इतना ही नहीं यह किसी भी प्रकार के विकिरण से रक्षा करता है |


रोड एक्सीडेंट से मुक्ति

पृथ्वी लगातार हमें अपनी चुंबकीय शक्ति , पञ्च तत्त्व की पूर्ति से अनेक तरह तरह के तरीकों से निरोग बनाने का कार्य करती है, परन्तु कही कही इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है , वैज्ञानिक इसे जियोपैथिक स्ट्रेस कहते है | जियोपैथिक स्ट्रेस की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका मतलब होता है ऐसी पीड़ा या परेशानी जो की पृथ्वी के प्रभाव के कारण होती है | जयोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत निकलने वाली उर्जायें एक सामान्य मनुष्य के उर्जा के स्तर से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है | इसीलिए अगर आप ऐसे स्ट्रेस जोन में  होते है या उसके प्रभाव में आते है तो  किसी Magnetic Grid Line या underground water system से उत्पन्न होने वाली तरंगो से प्रभावित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है | यह पिरामिड सभी प्रकार से जियोपैथिक स्ट्रैस से व्यक्ति की रक्षा करके हर प्रकार की दुर्घटना से रक्षा करता है | इसे अपनी कार ,ट्रक , ट्रैक्टर या बस में रखने से अनेक चमत्कारिक परिणाम मिलते है | 
अज्ञात तकलीफो से मुक्ति

पृथ्वी की नकारात्मक शक्ति { जियोपैथिक स्ट्रैस } , वास्तुदोष, नकारात्मक ऊर्जा के कारण , किसी विशेष घर के लोग बहुत परेशान रहते है , इसमें नींद ना आने की समस्या, सिरदर्द, बैचेनी, बुख़ार , कैंसर  बच्चों का चिडचिडा व्यवहार, बड़ों में मनमुटाव , अच्छे खासे व्यापार का अचानक डूब जाना , घर के बीमार लोगों को दवाओं का असर न होना , बड़ों में अवसाद { डिप्रेशन } का शिकार होना , आदि मामलों में यह पिरामिड अत्यंत उपयोगी है |


जहरीले जीव जंतुओं , जलने पर तुरंत असरकारक 

30 Oct 2020

प्राण योग से क्रोध / गुस्सा , अवसाद , चिंता , तनाव , नकारात्मक विचार ,अनिद्रा ,आक्रामकता मुक्त कैसे बनें | { तुरंत असरकारक } | { तुरंत असरकारक } Cure Anxiety; Insomnia,Negative Thought, Anger,Depression, Stress Through PranYoga

यह प्राण योग ध्यान ध्वनि तरंगों के माध्यम आपकी प्राण शक्ति में वृद्धि करती है, जिससे प्राण और उदान नामक प्राण संतुलित होने से मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले Endorphins , Serotonin, Dopamine, Oxytocin आदि हार्मोन्स का उत्पादन, और संतुलन होने लगता है | { इन सभी को हैप्पी हार्मोन्स के नाम से जाना जाता है } जिससे व्यक्ति के विकार दूर होकर उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होने लगती है | प्राण योग द्वारा ध्वनि तरंगो के माध्यम से ह्रदय और विशुद्धि चक्र को संतुलित किया गया है, जिससे ह्रदय सम्बन्धी समस्त विकार दूर होते है, विशुद्धि चक्र के संतुलन से वाणी सम्बन्धी दोष दूर हो जाते है | प्राण योग ध्यान आपके मस्तिष्क में अल्फ़ा तरंगो को बढ़ा देता है, जिससे व्यक्ति को शान्ति ,आनन्द की प्राप्ति और तनाव से मुक्ति मिलती है | ये मैडिटेशन तरंगे आंतरिक अंगो में एक्युप्रेशर का कार्य करती है |

साधना विधि –

======

प्राण योग ध्यान को सुनना शुरू कीजिये ,सीधे आसमान की तरफ मुँह करके लेट जाएँ हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये , आँखे बंद कीजिये , अब जोर जोर से साँस लेना और छोड़ना शुरू कीजिये , ऐसा छह मिनिट तक करना है, अब कल्पना कीजिए , प्राण ऊर्जा आपके शरीर में आ रही है , जो आपकी चिंता , तनाव सहित समस्त समस्याओं को ठीक करने जा रही है , फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें , प्राण योग ध्यान मैडिटेशन की ध्वनि को आपने आज्ञा चक्र { माथे पर दोनों आँखों के बीच } पर 9 मिनिट तक महसूस करे | अब आँखे खोल लीजिये , आप अपने आप को एक नयी दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण पायेगें | और चिन्ता और तनाव से भी आप मुक्त हो चुके है |

26 Oct 2020

प्राण योग से थायराइड से मुक्ति

थायराइड तितली के आकार की ग्रंथि होती है। यह गर्दन के अंदर और कॉलरबोन के ठीक ऊपर स्थित होती है। थायराइड एक प्रकार की एंडोक्राइन ग्रंथि (नलिकाहीन ग्रन्थियां) है, जो हार्मोन बनाती है। थायराइड विकार एक आम समस्‍या है जो पुरुषों से ज्‍यादा महिलाओं को प्रभावित करती है। प्रमुख तौर पर थायराइड दो प्रकार का होता है –

हाइपरथायराइड और हाइपोथायराइड। हाइपरथायराइडिज्‍म में अत्‍यधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनने लगता है जबकि हाइपोथायराइडिजम में इस हार्मोन का उत्‍पादन कम होता है।.

थायराइड संबंधी समस्याएं के लक्षण –

1. हाइपरथायराइडिज्‍म के सबसे सामान्‍य लक्षण हैं: वजन कम होना घबराहट, चिंता, परेशानी और मूड बदलना थकान सांस फूलना दिल की धड़कन तेज होना गर्मी ज्‍यादा लगना कम नींद आना अधिक प्‍यास लगना आंखों में लालपन और सूखापन होना बाल झड़ना और बालों का पतला होना

2. हाइपोथायराइडिज्‍म 

हाइपोथायराइडिज्‍म के सबसे सामान्‍य लक्षण हैं: वजन बढ़ना थकान नाखूनों और बालों का कमजोर होना त्‍वचा का रूखा और पतला होना बालों का झड़ना सर्दी ज्‍यादा लगना अवसाद (डिप्रेशन) मांसपेशियों में अकड़न गला बैठना मानसिक तनाव.

थायरॉयड का उपचार-

किसी भी आसन में बैठ जाएँ , सम्पूर्ण शरीर को शिथिल छोड़ दे, अपनी आँखे बंद कीजिए | 9 बार लम्बी गहरी साँस लें |

शंख मुद्रा लगाए ,

शंख मुद्रा

 

फिर प्राण ऊर्जा ध्यान की ध्वनि को सुने , इसकी लिंक यहाँ दी गयी है |

प्राण ऊर्जा ध्यान

इस समय धीरे – धीरे , लम्बी गहरी साँस लेते रहे | ध्यान समाप्ति पर अपने दोनों हाथो को आपस में रगड़िये , और उत्पन्न हुयी प्राण ऊर्जा को अपने हाथों के स्पर्श से गर्दन में प्रवाहित होने दे , फिर धीरे धीरे अपनी आँखे खोलें |

ध्यान समय = न्यूनतम 30 मिनिट्स |

अन्य निर्देश=

1. समुद्री नमक के स्थान पर सेंधा नमक , का ही प्रयोग करें , आयोडीन युक्त नमक ही इस समस्या की जड़ है |

2 प्राण योग ध्यान के समय किसी भी नशीले पदार्थों , मांस , मिर्च मसालों का प्रयोग वर्जित है |

3 . शक्कर की जगह खांड शक्कर या गुड़ का प्रयोग करें |

4 .रिफाइन तेल के स्थान पर कच्ची घानी का तेल प्रयोग करें |

5 .पार्क या खेत में 30 मिनिट प्रतिदिन नंगे पैर भ्रमण करें | और दिन में दो बार प्याज के रस की गले पर मालिस करें |

6 .एक माह बाद , अपनी थाइरोइड की जाँच करवाएं , अब आप पूरी तरह से ठीक हो चुके होंगे | 

26 Oct 2020

प्राणयोग द्वारा घुटनों के दर्द से मुक्ति– तुरंत आराम पाएं

प्राणयोग द्वारा घुटनों के दर्द से मुक्ति — तुरंत आराम पाएं

=========================

प्राण योग चिकित्सा फ्रीक्वेंसी , एनर्जी ,और वाइब्रेशन पर आधारित है, इसमें ध्वनि को चक्रों और पंच तत्वों की फ्रीक्वेंसी , शरीर की असंतुलित हो चुकी प्राण ऊर्जा और सम्बंधित अंग विशेष के वाइब्रेशन पर निर्धारित करके ध्यान संगीत के माध्यम से पीड़ित व्यक्ति को दिया जाता है | यह चिकित्सा आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेशर का कार्य करती है | यह दुष्प्रभाव रहित भारतीय चिकित्सा पद्धति है, इस चिकित्सा में चक्रों का संतुलन , ऊर्जा का परिमार्जन, और पञ्च तत्वों का संतुलन सब साथ – साथ किया जाता है | प्राण ऊर्जा पर आधारित यह चिकित्सा अत्यंत प्रभावी है , इसमें ध्वनि तरंगों द्वारा प्राण तत्त्व को पुन: स्थापित करके , शरीर में ऊर्जा का संतुलन किया जाता है, फलस्वरूप शरीर स्वत: हीलिंग प्रक्रिया शुरू कर देता है |

विधि –

=======

सबसे पहले किसी शांत स्थान पर बैठे , सारे शरीर को शिथिल करते हुए , नाभि से खींचते हुए 12 बार लम्बी गहरी साँस लें | फिर शरीर को शिथिल करते हुए , आँखे बंद करके , अस्थि आरोग्य प्राण ऊर्जा ध्वनि को अपने दर्द वाले स्थान पर महसूस करे | इसी दौरान पारस मुद्रा 30 बार करें , पारस मुद्रा की लिंक यहाँ दी जा रही है |

चित्र और वीडियो में दिए गए निर्देशों के अनुसार पारस मुद्रा दिन में तीन बार , तीस -तीस बार करने से घुटनो के ऑप्रेशन के लिए जा रहे मरीज भी चमत्कारिक रूप से ठीक हुए है , इस मुद्रा को करते ही आराम लगना शुरू हो जाता है | इस मुद्रा को करते समय ” ॐ नमाय : शिवाय का जाप जरूर करें | फिर आँखे खोलकर हाथों को आपस में रगड़कर दर्द वाले स्थान पर 2 मिनिट्स तक दोनों हाथों की मध्यमा अंगुली { Middle Finger } और अनामिकाअंगुली { Ring Finger } को प्राण ऊर्जा दें { मध्यमा अंगुली और अनामिका अंगुली पर मसाज करें } | अब आपको दर्द में तेजी से सुधार होता हुआ दिखाई देगा | यह आपको 21 दिन तक करना है, दिन या रात , सुबह या शाम किसी भी समय कर सकते है | सोते , जागते , चलते फिरते किसी भी अवस्था में किया जा सकता है |

समय – कम से कम 21 मिनिट्स |

अवधि – 21 दिन तक |

जोड़ों की समस्या का अन्य घरेलु समाधान — योगी योगानंद {अध्यात्म ,योग गुरु }

=================================================

1 . गठिया का इलाज – आँवला , मैथी , अजवायन , छोटी हरड़ सभी का पाउडर बनाकर , उसने सेंधा नमक मिलाकर सुबह -शाम आधा चम्मच महीने भर लेने से गठिया ठीक होता है |

2 . घुटनों में लिक्विड समाप्त हो जाना 

एक कप गुनगुने पानी में तीन चम्मच एप्पल साइडर विनेगर तथा 1 चम्मच शहद मिलकर 40 दिन तक दिन में तीन बार पीने से घुटनों में समाप्त हुआ सायनोवियल फ्लूड बनना शुरू हो जाता है | घुटनों की सायनोवियल कम होने के निम्न लिखित कारणों को दूर करने का प्रयास करें | रात को जागने की आदत अधिक चिंता करना गिरने से चोट लगना अधिक वजन होना कब्ज रहना खाना जल्दी-जल्दी खाने की आदत फास्ट-फूड का अधिक सेवन तली हुई चीजें बहुत ज्‍यादा खाना कम मात्रा में पानी पीना या खड़े होकर पानी पीना बॉडी में कैल्शियम की कमी

3 . घुटनों में सूजन आना

भोजन में दालचीनी, जीरा, अदरक और हल्दी का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करें। गर्म तासीर वाले इन पदार्थों के सेवन से घुटनों की सूजन और दर्द कम होता है। दालचीनी की छाल का चूर्ण तैयार कर एक कप पानी के साथ लगभग 2 ग्राम चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन सुबह भोजन के बाद लिया जाए तो जोड़ दर्द में तेजी से आराम मिलता है और सूजन ठीक होती है | करीब 8-10 लहसुन की कलियों को तेल या घी के साथ फ्राई कर लिया जाए और खाने से पहले चबाया जाए तो जोड़ दर्द में तेजी से आराम मिलता है, ऐसा प्रतिदिन किया जाना चाहिए। लहसुन की कलियों को सरसों के तेल के साथ कुचलकर गर्म किया जाए और कपूर मिलाकर जोड़ों या दर्द वाले हिस्सों पर लगाकर मालिश की जाए तो भी तेजी से आराम मिलता है।

4 . घुटनों में गर्माहट रहना या जलन पड़ना –

मेथी दाना, सौंठ और हल्दी बराबर मात्रा में मिला कर तवे या कढ़ाई में भून कर पीस लें। रोजाना एक चम्मच चूर्ण सुबह-शाम भोजन करने के बाद गर्म पानी के साथ लें।

5 . कार्टिलेज का टूटना या घिस जाना 

रोज सुबह खाली पेट, तीन चम्मच देसी चना , एक चम्मच मेथी अंकुरित करके खाने से कार्टिलेज की समस्या का समाधान हो जाता है | आप सुबह खाली पेट लहसुन की एक कली दही के साथ खाएं। अलसी के दानों के साथ दो अखरोट की गिरी सेवन करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।

6 . घुटनों में गैप आना

गेहूँ के दाने के आकार के बराबर चूना दही या दूध में घोलकर दिन में एक बार खाएं। इससे अगर घुटनों की तकलीफ नई नई है तो 6 -7 दिन में ही घुटनों का दर्द ठीक हो जाता है, अगर ज्यादा समय से समस्या है तो इसे 90 दिन तक लेने से कैल्शियम की कमी दूर होगीऔर घुटनों में आया गैप प्राकृतिक रूप से ठीक होगा |

7 . लिगामेंट का टूट जाना –

दालचीनी,अननास, ओटमील, संतरे का जूस, बादाम, शहद आदि को मिलकर ज्यूस बनाकर तीस दिन तक पीने से लिगामेंट की समस्या से निजात मिलती है | प्राण ऊर्जा से लिगमेंट का इलाज संभव है , अनेक मरीजों को तुरंत एक मिनिट में ही पूरी तरह ठीक होते देखा गया है |

8 . जोड़ों में कड़ापन आना –

50 ग्राम पालक , 50 ग्राम पार्शली पांच गाजर , एक आँवला , 10 ग्राम पुदीना , 50 ग्राम लौकी ,एक मूली , एक टमाटर को लेकर जूस बनाये , यह जोड़ों का कड़ापन ख़तम करके जोड़ो में लोचकता प्रदान करता है, और जोड़ो से यूरिक एसिड को बाहर निकलता है |

9. रीढ़ की अस्थि की समस्या –

अगर ऱीढ़ की अस्थि में समस्या है, तो तीन माह तक , चने के दाने बराबर चूना तीन माह तक दूध में डालकर दिन में एक बार पिए | नमक , शक्कर और रिफाइन ऑइल के स्थान पर सेंधा नमक , मिश्री और कच्ची घानी के तेल का ही प्रयोग करें |

निर्देश –

1 . समुद्री नमक { आयोडीन युक्त } के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करें |

2 . शक्क्कर के स्थान पर गुड़ का प्रयोग करें |

3.रिफाइन तेल का प्रयोग बिलकुल न करें , सिर्फ फ़िल्टर या कच्ची घानी के तेल का प्रयोग करें |

4 . एप्सम साल्ट { मैग्नेसियम सल्फेट } को गुनगुने पानी में डालकर उस पानी को 30 बार घुटनों पर डालें |

24 Oct 2020

प्राण योग से घाव ,चोट, मोच ,खरोंच एव ऑप्रेशन और एक्सीडेंट से अंगों की खोई प्राण शक्ति वापिस लाएं |

प्राण योग विज्ञानं के अनुसार विभिन्न चक्रों , पञ्च तत्त्व , पञ्च प्राण , और ऊर्जा के असंतुलन से विभिन्न प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होती है , प्राण योग के द्वारा , प्राकृतिक तरीकों से शरीर में असंतुलित तत्वों , चक्रों, प्राणों को संतुलित किया जाता है | प्राण ऊर्जा चिकित्सा में एक निश्चित ध्वनि ,ऊर्जा , वाइब्रेशन पर शरीर के अंगों में सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है | इस प्राण योग ध्यान से आपको निम्न लिखित बीमारियों में लाभ मिलता है |

ऊर्जा प्रभाव निम्न लिखित में लाभकारी है 

लीवर की बीमारी,

किडनी की बीमारी

आँखों के दोष

कान सम्बन्धी समस्या ,

ह्रदय रोग ,

घुटनो की तकलीफ

पाचन तंत्र की बीमारी

रीढ़ की हड्ड़ी की समस्या ,

अस्थमा

टी बी रोग

कैंसर

जल जाना

गैस्ट्रिक

एसिडिटी

मायग्रेन

बालों की समस्या

एडी में दर्द चोट लगना ,

मोच आना घाव हो जाना ,

डायबिटीज

आभा मण्डल में वृद्धि

शरीर के चारों तरफ सुरक्षा कवच का निर्माण

ख़राब हो चुके अंगो में पुन : जीवनी शक्ति का उदय

रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि

आदि में अत्यन्त उपयोगी |

विधि

====

किसी एकांत स्थान पर पद्मासन , सुखासन , वज्रासन में या किसी भी आसन में बैठे , या फिर आसमान की तरफ सिर करके लेट जाये , हथेलियाँ आसमान की तरफ अधखुली रहें , फिर 15 बार लम्बी गहरी साँस लें , तत्पश्चात तकलीफ वाले स्थान या अपनी समस्या पर ध्वनि को महसूस करे तथा मन ही मन यह कल्पना करें कि आपकी तकलीफ या समस्या दूर हो रही है, और आपका जीवन उत्साह , ख़ुशी , समृद्धि और आनंद से परिपूर्ण हो रहा है | | 21 मिनिट बाद आपको दर्द से राहत महसूस होगी , श्रेष्ठ परिणाम के लिए 21 दिन तक प्रतिदिन कम से कम 21 मिनिट तक इस प्रक्रिया या ठीक होने तक दोहराएं | हैड फ़ोन का प्रयोग करने से ज्यादा अच्छे परिणाम मिलते है | प्रतिदिन सुबह – शाम 21 दिन तक कम से कम 21 मिनिट तक सुनने से बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते है |

प्राण ऊर्जा विशेषज्ञ – योगी योगानंद

Energetic Effects

Aura Cleansing

Healer energy Chakra Alignment

Restructures damaged organs by sending message to tissues and bringing them to original form .

Influences the energy field around you .

Influenced the energy field around your home and office .

Rapid healing of Burns, fractures , Sprain, cuts, and other Injuries.

It enhance the immune system .

प्राण योग चिकित्सा की विशेषताएं

1 किसी भी आयु वर्ग का कोई भी व्यक्ति इससे लाभ ले सकता है | {एक दिन से लेकर 100 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्ति }

2 .बीमार , अपाहिज , अशक्त सभी के लिए यह समान रूप से उपयोगी है |

3 .इसे कभी भी , कही भी , किसी भी अवस्था में सोते , जागते , चलते , फिरते किया जा सकता है | इसमें किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है |

4 . यह तुरंत असरकारक है , बिना दवा , बिना इंजेक्शन , बिना जाँच , बिना फीस , बिना दुष्प्रभाव , तुरंत आराम |

5 .यह प्राण सन्तुलन , चक्र संतुलन , पञ्च तत्त्व संतुलन , असंतुलित ऊर्जा को शरीर में संतुलित करता है, इसलिए बिना दुष्प्रभाव तुरंत असर दिखाता है |

6 . यह व्यक्ति के तीनो प्रकार के स्वास्थ शारीरिक , मानसिक , आध्यात्मिक में वृद्धि करता है |

7 . यह प्राण योग व्यक्ति के भूतकाल , वर्तमान और भविष्य से भी सम्बंधित है |

8 . यह व्यक्ति के शरीर की अवरूद्ध हो गयी ऊर्जाओं के पुन : संतुलन पर आधारित है |

9 . प्राण योग में प्रकृति प्रदत्त समस्त वस्तुओं का इलाज में प्रयोग किया जाता है |

10 .यह प्राण योग पद्धति हमारे ऋषि -मुनियों द्वारा दी गयी प्राचीन महान विद्या है, जो वर्तमान विज्ञानं से हजारों -हजार साल आगें है |

24 Oct 2020

बढ़ती उम्र को प्राण योग से नियंत्रित करें | Pran yoga for anti ageing

वैज्ञानिक व्याख्या

============

प्राण योग आपके चक्र { अन्त स्त्रावी ग्रंथियों } से निकलने वाले हार्मोन्स को नियंत्रित करता है, फलस्वरूप आप हमेशा युवा जवान दिखाई देने लगते है , प्राण योग आपके मस्तिष्क से निकलने वाली अल्फ़ा , बीटा , डेल्टा तरंगो को बढ़ा देता है, फलस्वरूप आप शांत , ऊर्जावान और तरोताजा महसूस करते है, प्राण योग ध्यान की तरंगे आपके आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर की तरह कार्य करती है, फलस्वरूप नयी कोशिकाओं का निर्माण होने से लम्बे समय तक युवा और अनेक बीमारियों से बचे रहते है |

विधि

===

प्राण योग ध्यान को सुनना शुरू कीजिये ,सीधे आसमान की तरफ मुँह करके लेट जाएँ हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये , आँखे बंद कीजिये , अब दाएं हाथ के अंगूठे से अपनी दांयी नाक के नथुने को बंद कीजिये , और बाएं नथुने से साँस खींचते हुए यह कल्पना कीजिये की प्राण ऊर्जा आपके शरीर में आ रही है , जो आपको लगातार युवा बनाये रखने सहित, समस्त समस्याओं को ठीक करने जा रही है , साँस को रोककर रखिये , जब तक घबराहट न होने लगे , साँस को रोके रखिये , फिर जब बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे फिर दाएं नथुने से बाहर निकाल दीजिये | अब बाएं नथुने को अनामिका अंगुली से बंद कीजिये , दायें नथुने से साँस खींचिए , और रोक कर रखिये , जब तक आपको घबराहट न होने लगे , अब बाएं से छोड़िये , आपको जिस तरफ से साँस लेना है, उसके विपरीत तरफ से छोड़ना है , और जिस तरफ से आपने साँस छोड़ी है, उसी तरफ से आपको लेनी है | ऐसा 11 बार करें , हर बार ज्यादा देर तक साँस रोकने का अभ्यास करें , फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें , प्राण योग ध्यान मैडिटेशन की ध्वनि को आपने सभी चक्रों पर 1 -1 मिनिट तक महसूस करे | अब आँखे खोल लीजिये , आप अपने आप को एक नयी दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण पायेगें | और हा, अपनी प्रतिक्रिया , देना न भूलें , मुझे इंतजार रहेगा |

24 Oct 2020

अपने शरीर को पावरहाउस कैसे बनाये |

अपनी प्राण ऊर्जा को संतुलित करें, Balance Your Energy

इस प्राण योग ध्यान के माध्यम से आपके चक्र { अन्त स्त्रावी ग्रंथियों } , पञ्च तत्त्व , पञ्च प्राण , को संतुलित किया गया है, फलस्वरूप आपकी किसी भी शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को यह ध्यान संतुलित करने का कार्य करता है, प्राण योग ध्यान की तरंगे आपके आंतरिक अंगो पर एक्यूप्रेसर की तरह कार्य करती है, जिससे आपको तुरंत लाभ महसूस होने लगता है |

विधि –

===

प्राण योग ध्यान को सुनना शुरू कीजिये ,सीधे आसमान की तरफ मुँह करके लेट जाएँ हथेलियां आसमान की तरफ अधखुली हो , शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये , आँखे बंद कीजिये , अब दाएं हाथ के अंगूठे से अपनी दांयी नाक के नथुने को बंद कीजिये , और बाएं नथुने से साँस खींचते हुए यह कल्पना कीजिये की प्राण ऊर्जा आपके शरीर में आ रही है , , साँस को रोककर रखिये , जब तक घबराहट न होने लगे , साँस को रोके रखिये , फिर जब बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे फिर दाएं नथुने से बाहर निकाल दीजिये | अब बाएं नथुने को अनामिका अंगुली से बंद कीजिये , दायें नथुने से साँस खींचिए , और रोक कर रखिये , जब तक आपको घबराहट न होने लगे , अब बाएं से छोड़िये , आपको जिस तरफ से साँस लेना है, उसके विपरीत तरफ से छोड़ना है , और जिस तरफ से आपने साँस छोड़ी है, उसी तरफ से आपको लेनी है | ऐसा 11 बार करें , हर बार ज्यादा देर तक साँस रोकने का अभ्यास करें , फिर शरीर को शिथिल छोड़ दें , प्राण योग ध्यान मैडिटेशन की ध्वनि को आपने सभी चक्रों पर 1 -1 मिनिट तक महसूस करे | अब आँखे खोल लीजिये , आप अपने आप को एक नयी दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण पायेगें | विशेष – ह्रदय रोगी , और उच्च रक्त चाप के मरीज , साँस रोके बिना सिर्फ आँखे बंद करके प्राण योग ध्वनि को सुने |

 

23 Oct 2020

आपकी समस्याओं का कारण — कही ये तो नहीं ? पृथ्वी की नकारात्मक ऊर्जा |

आपकी समस्याओं का कारण — कही ये तो नहीं ? पृथ्वी की नकारात्मक ऊर्जा |

पृथ्वी लगातार हमें अपनी चुंबकीय शक्ति , पञ्च तत्त्व की पूर्ति से अनेक तरह तरह के तरीकों से निरोग बनाने का कार्य करती है, परन्तु कही कही इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलता है , वैज्ञानिक इसे जियोपैथिक स्ट्रेस कहते है, यह क्या होता है, इसके प्रभाव क्या होते है, इसको कैसे पहचाने, इसे दूर करने के क्या उपाय है |

जियोपैथिक स्ट्रेस

जियो का अर्थ होता है – पृथ्वी और पैथिक के दो अर्थ होते है – पहला रोग और दूसरा अर्थ रोग का निवारण | जियोपैथिक स्ट्रेस की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका मतलब होता है ऐसी पीड़ा या परेशानी जो की पृथ्वी के प्रभाव का कारण होती है | जर्मन शोधकर्ता Baron Gustav Frei Herr Von Pohl ने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजात किया था | geopathic stress zone and vastuउन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जियोपैथिक स्ट्रेस जोन पर शोध करने में बिताया और इस नतीजे पर पहुंचे की लगभग प्रत्येक बीमारी का कुछ न कुछ सम्बन्ध जियोपैथिक स्ट्रेस से पाया जा सकता है | इस शब्द का उपयोग उस अवस्था के लिए किया जाता है जब प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से पृथ्वी से निकलने वाली उर्जा मनुष्य के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालती है | यानि की पृथ्वी से उत्पन्न नुकसानदायक तरंगो के मनुष्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को जियोपैथिक स्ट्रेस कहा जाता है | यह भी एक तरह का वास्तु दोष है क्योंकि इसमें भी घर के अन्दर अशुभ उर्जा का प्रवाह होता है |

जियोपैथिक स्ट्रेस जोन आखिर होता क्या है ?

पृथ्वी पर उर्जा का प्रवाह उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर विशाल ग्रिड लाइन्स के रूप में होता है | इसके परिणामस्वरूप एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है | इन ग्रिड लाइन्स को हर्टमैन ग्रिड और करी ग्रिड लाइन्स के रूप में जाना जाता है |

जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से उत्पन्न समस्याएं –

जयोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत निकलने वाली उर्जायें एक सामान्य मनुष्य के उर्जा के स्तर से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है | इसीलिए अगर आप ऐसे स्ट्रेस जोन में सोते है या ज्यादा वक्त बिताते है जो की किसी Magnetic Grid Line या underground water system से उत्पन्न होने वाली तरंगो से प्रभावित है तो इसका आप पर बुरा असर पड़ सकता है | जियोपैथिक स्ट्रेस कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है | इससे होने वाली बिमारियों में कैंसर सबसे घातक है, यहाँ तक की टयुमर्स तो तकरीबन हमेशा बिलकुल उस स्थान पर विकसित होते है जहाँ पर दो या अधिक जियोपैथिक स्ट्रेस लाइन्स किसी आदमी के शरीर से होकर गुजरती है जहाँ पर वो सोता है | डॉ. मैनफेड ने अपने अध्ययन में पाया कि प्राकृतिक विद्युत् रेखाओं का एक जाल पृथ्वी को घेरे हुए है | ये रेखाएं ईशान (North-East) से नैऋत्य (South-West) की ओर व आग्नेय (South-East) से वायव्य (North-West) की ओर प्रवाहमान रहती है | उर्जा रेखाओं के इस प्रवाह को करी ग्रिड (Currie Grid) के नाम से जाना जाता है | इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोगुना हो जाता है | ये जियोपैथिक स्ट्रेस के सम्बन्ध में हुए शोध ये बताते है की ऐसे 85% मरीज जो कैंसर से मर जाते है ऐसा उनके जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ज्यादा संपर्क में रहने के कारण हुआ | दुनिया के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ और जर्मन डॉक्टर Hans Nieper ने बताया है की उनके 92% कैंसर के मरीज जियोपैथिक स्ट्रेस से प्रभावित थे | इसी क्षेत्र में शोध करने वाले एक एक प्रमुख शख्सियत Von Pohl जिन्होंने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजाद किया, उन्होंने Central Committee for Cancer Research, Berlin, Germany, के सामने ये साबित किया की किसी व्यक्ति को कैंसर की सम्भावनाये बहुत कम हो जाती है अगर उसने अपना समय जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ना बिताया हो, विशेष तौर पर सोते वक्त क्योंकि सामान्यतया जहाँ हम सोते है वहाँ GS जोन का असर ज्यादा होता है क्यूंकि उस वक्त हम स्थिर और ज्यादा ग्राह्य होते है | कैंसर पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन के असर को लेकर हुआ शोध और भी पुख्ता हो जाता है जब हम इस मसले पर अन्य शोधकर्ताओं के रिसर्च को देखते है | जैसे की डॉक्टर Ernst Hartmann, MD ने भी जियोपैथिक स्ट्रेस को कैंसर Dr. Ernst hartmann grid and Geopathic stress के सबसे मुख्य कारणों में से एक माना है | उन्होंने कहा है की हम सभी कैंसर के लिए जिम्मेदार सेल्स पैदा करते है, लेकिन वो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि की इम्यून सिस्टम के कारण साथ के साथ नष्ट भी कर दिए जाते है | लेकिन जब आप GS जोन के प्रभाव में आते है तो वो सीधे तौर पर आपको कैंसर तो नहीं देता है लेकिन कैंसर सेल्स को नष्ट करने के लिए जरुरी इम्यून सिस्टम को ही वो कमजोर कर देता है जिससे आपके कैंसर सेल्स नष्ट होने बंद हो जाते है और फिर वो ही कैंसर का कारण बनता है | सिर्फ कैंसर ही नहीं बल्कि गंभीर दीर्घकालीन बीमारियों और मनोरोगों की स्थिति में भी जियोपैथिक स्ट्रेस एक बड़े कारण के रूप में सामने आया है | इसके कारण नींद ना आने की समस्या, सिरदर्द, बैचेनी, और बच्चों का चिडचिडा व्यवहार जैसी समस्याएँ भी आती है |

लक्षण 

लक्षण जिनसे आप जियोपैथिक स्ट्रेस जोन का पता लगा सकते है,

जैसे कि – घर में अशांति का वातावरण होना

डिप्रेशन

बार बार बीमार होना

पेड़ का टेढ़ा मेढ़ा होना

सिरदर्द

दवाइयों का असर न करना

बच्चों को सोने में परेशानी होना

विधुत सम्बन्धी उपकरणों के प्रति संवेदनशीलता

बगीचे में किसी स्थान पर घास का ना उगना

दीवारों में दरारों का आना

पैरासाइट्स, बैक्टीरिया, वायरस की मौजूदगी

मधुमक्खियों का छत्ता

घर में सोने पर डरावने सपने आना

सड़क हादसों की अधिकता वाले स्थान

नींद ना आने की समस्या

बैचेनी

बच्चों का चिडचिडा व्यवहार

23 Oct 2020

शारीरिक दर्द से मुक्ति पायें |

शारीरिक दर्द से मुक्ति पायें |

=================================

वैज्ञानिक व्याख्या –

===========

मानव शरीर का प्रत्येक अंग एक निश्चित ऊर्जा पर कार्य करता है, यह ऊर्जा तरंगों , वाइब्रेशन के माध्यम से उत्पन्न होती है इस ऊर्जा के असंतुलन से अंग विशेष की कार्य प्रणाली में जब अवरोध आ जाता है, तब अवरोध को ही विकार या बीमारी कहा जाता है , , इसे योग विज्ञानं में चक्रों का असंतुलन , प्राण योग में प्राणों का असंतुलन , आयुर्वेद में पञ्च तत्व और त्रिदोषों का असंतुलन कहा गया है , जिसके असंतुलन से ही प्राण वायु के असंतुलन से शरीर में पीड़ा का अनुभव होता है , प्राण योग ध्यान विधि में प्राण , चक्र , पञ्च तत्त्व की फ्रीक्वेंसी के बराबर की ध्वनि को आपको सुनाया जाता है, जिसके फलस्वरूप शरीर की ऊर्जा प्रणाली फिर से सक्रिय रूप से कार्य करने लगती है, और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है, यह प्राण योग धवनि एक्यूप्रेसर का कार्य करती है, और अवरोध हुयी ऊर्जा को ठीक करती है, | जैसे एक निश्चित आवर्ती की ध्वनि को आप नहीं सुन सकते , अगर आप सुनते है, तो मस्तिष्क की नसें फट जाती है, क्योकि वहाँ दवाव अधिक हो जाता है, वैसे ही ये ध्यान अंग विशेष पर दबाब बनाकर उसे स्वस्थ बनाने का कार्य करता है | फलस्वरूप शरीर स्वस्थ , विकार रहित हो जाता है |

विधि –

=====

किसी एकांत स्थान पर पद्मासन , सुखासन , वज्रासन में या किसी भी आसन में बैठे , या फिर आसमान की तरफ सिर करके लेट जाये , हथेलियाँ आसमान की तरफ अधखुली रहें , फिर 21 बार लम्बी गहरी साँस लें , तत्पश्चात तकलीफ वाले स्थान या अपनी समस्या पर ध्वनि को महसूस करे तथा मन ही मन यह कल्पना करें कि आपकी तकलीफ या समस्या दूर हो रही है, और आपका जीवन उत्साह , ख़ुशी , समृद्धि और आनंद से परिपूर्ण हो रहा है | | 21 मिनिट बाद आपको दर्द से राहत महसूस होगी , श्रेष्ठ परिणाम के लिए 21 दिन तक प्रतिदिन कम से कम 21 मिनिट तक इस प्रक्रिया या ठीक होने तक दोहराएं | हैड फ़ोन का प्रयोग करने से ज्यादा अच्छे परिणाम मिलते है | प्रतिदिन सुबह – शाम 21 दिन तक कम से कम 21 मिनिट तक सुनने से बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते है |

प्राण ऊर्जा विशेषज्ञ – योगी योगानंद

Marketing By StartStage